शनिवार, 21 दिसंबर 2024

पत्र 26,27,28 |पीछे की तरफ एक नज़र, फॉसिल और पुराने खंडहर | पिता के पत्र पुत्री के नाम

पत्र 26 में जवाहरलाल नेहरू जरा ठहर कर पृथ्वी और मानव सभ्यता के लंबे इतिहास पर विचार करते हैं। वह कहते हैं कि कुछ समय के लिए वह नई बातें नहीं लिखेंगे, बल्कि इंदिरा से उम्मीद करते हैं कि वह पहले से लिखी गई बातों पर ध्यान दे। नेहरू बताते हैं कि उन्होंने अपने खतों में करोड़ों साल की यात्रा की है, जब पृथ्वी सूरज का हिस्सा थी और धीरे-धीरे ठंडी होकर अलग हुई। इसके बाद जीवन का जन्म हुआ, जो लाखों-करोड़ों सालों में धीरे-धीरे विकसित हुआ।

नेहरू इंदिरा को समझाते हैं कि जीवन का विकास एक बहुत लंबी प्रक्रिया थी, और इस विशाल समय की कल्पना करना मुश्किल है। वह इंदिरा को याद दिलाते हैं कि इंसान का जीवन इन अनगिनत वर्षों की तुलना में कितना छोटा और मामूली है, और हमें छोटी-छोटी बातों से परेशान नहीं होना चाहिए। नेहरू यह भी बताते हैं कि शुरुआती समय में सिर्फ जानवर थे, और इंसान बहुत कमजोर और छोटा प्राणी था। धीरे-धीरे, हज़ारों सालों में इंसान मजबूत और होशियार बन गया और पृथ्वी पर अन्य जानवरों पर हावी हो गया।

नेहरू यह भी बताते हैं कि असली मानव इतिहास और सभ्यता की उन्नति पिछले तीन-चार हजार सालों में हुई है। जब इंदिरा बड़ी होगी, तो वह इस इतिहास को विस्तार से पढ़ेगी, और वह इन पत्रों में केवल एक झलक दिखा रहे हैं ताकि इंदिरा को इस छोटे से संसार में इंसान की यात्रा के बारे में कुछ जानकारी हो।

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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

पत्र 25 | राजा, मन्दिर और पुजारी | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू समाज की संरचना पर चर्चा करते हुए किसानों, राजा और पुजारियों की भूमिकाओं को समझाते हैं। वे बताते हैं कि किसान और मजदूर, जो भोजन उगाने और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगे रहते थे, सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी शोषित होते थे। उनका अधिकतर उत्पादन राजा और जमींदारों को चला जाता था, जबकि वे खुद बहुत कम पाते थे।

इसके बाद नेहरू धर्म की उत्पत्ति पर बात करते हैं, बताते हुए कि प्रारंभिक मनुष्यों ने प्राकृतिक शक्तियों और अदृश्य चीजों से डरकर देवता बनाए। इन देवताओं की पूजा के लिए मंदिर बनाए गए, जिनमें डरावनी और भयानक मूर्तियाँ होती थीं। लोग इन मूर्तियों की पूजा इसलिए करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि देवता क्रोधित और कठोर होते हैं।

पुजारी, जो उस समय के शिक्षित लोग थे, राजा के सलाहकार बन गए। वे केवल धार्मिक कार्य ही नहीं करते थे बल्कि डॉक्टर, विद्वान, और कभी-कभी जादूगर भी होते थे, जिससे लोग उनका सम्मान और डर करते थे। पुजारी अक्सर लोगों को धोखा देते थे, लेकिन उन्होंने समाज को कुछ हद तक आगे बढ़ाने में भी मदद की।

नेहरू अंत में बताते हैं कि कुछ समाजों में पहले पुजारी शासन करते थे, लेकिन बाद में राजा, जो लड़ाई में कुशल होते थे, ने उन्हें हटा दिया। मिस्र के फिरऊन जैसे कुछ शासक खुद को आधा देवता मानते थे, और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें पूर्ण देवता के रूप में पूजा जाता था।

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गुरुवार, 28 नवंबर 2024

पत्र 24 | आदमियों के अलग-अलग दरजे | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू समझाते हैं कि इतिहास सिर्फ लड़ाइयों और राजाओं के नामों और तारीखों को याद करने का विषहीं है। इतिहास का असल उद्देश्य यह है कि वह हमें यह बताए कि लोग कैसे रहते थे, क्या सोचते थे, और किन कठिनाइयों का सामना करते थे। अगर हम इतिहास को इस नज़रिए से पढ़ें, तो हम उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं और अगर हम भी किसी मुश्किल स्थिति में हों, तो इतिहास से मदद लेकर उस पर काबू पा सकते हैं।

नेहरू फिर प्राचीन समाज में विभिन्न वर्गों के बारे में बात करते हैं। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे समाज का विकास हुआ, काम का विभाजन हुआ और विभिन्न वर्ग बने। इनमें राजा और उसके दरबारी, मंदिर के पुजारी, व्यापारी, कारीगर और सबसे बड़ा वर्ग किसानों और मजदूरों का था। यह वर्ग विभाजन इस बात को दर्शाता है कि कैसे शासक और प्रबंधक वर्गों ने अधिक शक्ति और संपत्ति हासिल की, जबकि मजदूर वर्ग का शोषण होता रहा।

अंत में, नेहरू बताते हैं कि इन वर्गों की समझ से हम इतिहास को गहराई से जान सकते हैं और यह जान सकते हैं कि समाज कैसे विकसित हुआ या नहीं हुआ।

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पत्र 23 | भाषा, लिखावट, और गिनती | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में, नेहरू भाषा, लिखावट, और गिनती के उद्गम और विकास पर चर्चा करते हैं। वे बताते हैं कि भाषा की शुरुआत शायद जानवरों की तरह, डर या चेतावनी देने वाली आवाज़ों से हुई होगी। प्रारंभ में, इंसानों ने साधारण आवाज़ें निकालीं, और बाद में श्रमिकों द्वारा काम करते समय समूह में निकाली गई आवाज़ें (मज़दूर बोलियाँ) भाषा का हिस्सा बनीं। धीरे-धीरे, अधिक शब्द जुड़ते गए, जैसे पानी, आग, घोड़ा, भालू, और फिर संपूर्ण वाक्य बनने लगे।

नेहरू यह भी बताते हैं कि प्रारंभिक सभ्यताओं में भाषा ने काफी प्रगति की थी, और गीत तथा कविताएँ लोकप्रिय थीं। उस समय लेखन कम प्रचलित था, इसलिए लोग ज़्यादातर बातें याद रखते थे। कवि और गायक वीरता के गीत गाते थे, जो उस समय की लड़ाई-झगड़े वाली जीवनशैली का प्रतीक थे।

लिखावट का आरंभ भी दिलचस्प था। नेहरू बताते हैं कि लिखने की शुरुआत तस्वीरों से हुई, जहाँ लोग किसी वस्तु का चित्र बनाते थे। धीरे-धीरे चित्र सरल होते गए और फिर वर्णमाला का विकास हुआ, जिससे लिखना आसान हो गया।

गिनती और अंक बहुत बड़ी खोज थी। बिना अंकों के व्यापार की कल्पना मुश्किल है। नेहरू बताते हैं कि यूरोप में पहले रोमन अंक प्रचलित थे, जो काफी कठिन थे। बाद में, "अरबी अंक" प्रचलित हुए, जो वास्तव में भारतीयों द्वारा विकसित किए गए थे। 

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गुरुवार, 21 नवंबर 2024

पत्र 22 | समुद्री सफ़र और व्यापार | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में नेहरू समुद्री सफर और व्यापार के विकास के बारे में बताते हैं। वे फिनीशियन जाति का उल्लेख करते हैं, जो व्यापार के लिए लंबे समुद्री सफर करती थी। वे प्राचीन समय के खतरनाक और रोमांचक समुद्री यात्राओं का वर्णन करते हैं, जब लोग छोटे-छोटे नावों में जोखिम भरे सफर पर निकलते थे। हालाँकि, ये यात्राएँ मुख्य रूप से व्यापार और धन कमाने के लिए की जाती थीं, न कि सिर्फ रोमांच के लिए।

नेहरू व्यापार के इतिहास की शुरुआत को समझाते हैं, जब लोग वस्तुओं का सीधे आदान-प्रदान (बार्टर) करते थे, जैसे एक गाय के बदले अनाज। बाद में, सोने और चांदी का इस्तेमाल व्यापार में होने लगा, जिससे वस्तुओं का आदान-प्रदान सरल हो गया। सोने और चांदी के सिक्के आने से व्यापार और आसान हो गया, क्योंकि वजन मापने की जरूरत नहीं रह गई।

वे बताते हैं कि आज व्यापार बहुत जटिल हो गया है। दूर-दूर से वस्तुएं एक देश से दूसरे देश तक आती हैं। वे उदाहरण देते हैं कि किस प्रकार भारत की रुई इंग्लैंड जाकर कपड़ा बनती है और फिर भारत में वापस आती है। यह प्रक्रिया समय और संसाधनों की बर्बादी है। नेहरू खादी पहनने की वकालत करते हैं, जिससे देशी उत्पादन को बढ़ावा मिले और गरीब कारीगरों की मदद हो।

अंत में, नेहरू पैसे की सही भूमिका समझाते हैं। पैसा केवल वस्तुओं का आदान-प्रदान करने का माध्यम है और इसे केवल जमा करने के बजाय इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि पैसा खुद में कोई मूल्य नहीं रखता जब तक इसका उपयोग किसी ज़रूरी चीज़ के लिए न किया जाए।

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बुधवार, 20 नवंबर 2024

पत्र 21 | चीन और हिन्दुस्तान | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू चीन और भारत की प्राचीन सभ्यताओं पर चर्चा करते हैं। वे बताते हैं कि जैसे मेसोपोटेमिया और मिस्र में सभ्यता का विकास हुआ, वैसे ही उसी समय चीन और भारत में भी उन्नत सभ्यताएँ विकसित हुईं। चीन में मंगोल जाति के लोग नदियों की घाटियों में बसे और उन्होंने पीतल और लोहे के बर्तन बनाए। उन्होंने नहरें और इमारतें बनाई और एक अनोखी चित्रलिपि विकसित की, जो आज भी इस्तेमाल होती है।

भारत के संदर्भ में नेहरू बताते हैं कि आर्यों के आने से पहले द्रविड़ सभ्यता का विकास हुआ था, जो ऊँचे स्तर की थी। द्रविड़ लोग व्यापार में माहिर थे और मेसोपोटेमिया और मिस्र में चावल, मसाले, और साखू की लकड़ी भेजते थे। इससे पता चलता है कि भारत का दूसरे देशों के साथ प्राचीन काल में भी गहरा व्यापारिक संबंध था।

नेहरू बताते हैं कि चीन और भारत में उस समय छोटी-छोटी रियासतें थीं, जिनमें से कई पंचायती राज के तहत चलती थीं, जबकि कुछ में राजा का शासन था। चीन में बाद में ये छोटी रियासतें एक बड़े साम्राज्य में बदल गईं, जिसके समय में चीन की महान दीवार का निर्माण हुआ था। नेहरू दीवार की विशालता का वर्णन करते हुए बताते हैं कि यह 1400 मील लंबी और 20 से 30 फीट ऊँची थी, जो अब भी अस्तित्व में है।

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सोमवार, 18 नवंबर 2024

पत्र 20 | मिश्र और क्रीट | पिता के पत्र पुत्री के नाम

 इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू प्राचीन मिस्र और क्रीट की सभ्यताओं के बारे में बताते हैं, जो उनकी अद्वितीय वास्तुकला, संस्कृति, और धार्मिक विश्वासों से जुड़ी हैं।

नेहरू मिस्र की विशाल इमारतों जैसे कि पिरामिड और स्फिंक्स का वर्णन करते हैं। पिरामिड मिस्र के पुराने फराओ (राजाओं) के मकबरे थे, जिनमें उनकी ममी (संरक्षित शव) और उनके साथ सोने-चांदी के गहने और वस्त्र रखे जाते थे ताकि उन्हें मृत्यु के बाद आवश्यकता हो। उन्होंने तूतनखामन नामक एक फराओ की ममी की खोज का भी उल्लेख किया। इसके अलावा, नेहरू मिस्र के प्राचीन नहरों और झीलों की बात करते हैं, जो खेती के लिए बनाई गई थीं, यह दिखाता है कि उस समय मिस्र के लोग कितने उन्नत और कुशल थे।

इसके बाद, नेहरू क्रीट द्वीप के बारे में बताते हैं, जहां प्राचीन समय में एक उन्नत सभ्यता थी। वे नोसोस के महल का उल्लेख करते हैं, जिसमें स्नानघर और पानी की पाइपलाइन जैसी आधुनिक सुविधाएं थीं। उन्होंने क्रीट से जुड़े प्रसिद्ध मिथकों का जिक्र भी किया, जैसे राजा मीनास की कहानी, जिसके छूने से सब कुछ सोना बन जाता था, और मिनोटॉर नामक राक्षस की कथा, जिसके लिए लड़के और लड़कियों की बलि दी जाती थी। नेहरू यह समझाने का प्रयास करते हैं कि प्राचीन धार्मिक विचार और बलि अनजाने और भय के कारण होते थे, और यह भी बताते हैं कि अब इंसानों की बलि लगभग समाप्त हो चुका है, हालांकि जानवरों की बलि अभी भी कहीं-कहीं दी जाती है। वे बलि की परंपरा को पूजा करने का अजीब तरीका कहते हैं!

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शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

पत्र 19 | पुरानी दुनिया के बड़े-बड़े शहर | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू ने प्राचीन दुनिया के बड़े शहरों के बारे में बताया है। उन्होंने समझाया कि प्राचीन सभ्यताएँ मुख्यतः नदियों के किनारे और उपजाऊ घाटियों में बसी थीं, जहाँ पानी और भोजन की प्रचुरता थी। नेहरू ने बाबुल, नेनुवा, और असुर जैसे प्राचीन शहरों का उल्लेख किया, जो अब मिट्टी और बालू के नीचे दब चुके हैं और सिर्फ खुदाई के दौरान उनके खंडहर मिलते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि समय के साथ इन पुराने शहरों के ऊपर नए शहर बस गए, लेकिन धीरे-धीरे वे भी वीरान हो गए और मिट्टी और धूल के नीचे दब गए। उन्होंने दमिश्क का उदाहरण दिया, जो आज भी एक प्राचीन और जीवित शहर है, और संभवतः दुनिया का सबसे पुराना शहर माना जाता है।

नेहरू ने भारतीय प्राचीन शहरों का भी उल्लेख किया, जैसे इंद्रप्रस्थ, जो दिल्ली के पास था और अब उसका कोई निशान नहीं है, और बनारस (काशी), जो दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। उन्होंने इलाहाबाद, कानपुर, पटना और चीन के पुराने शहरों का भी जिक्र किया, जो नदियों के किनारे स्थित हैं, लेकिन ये इतने पुराने नहीं हैं।

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बुधवार, 13 नवंबर 2024

पत्र 18 | शुरू का रहन-सहन | पिता के पत्र पुत्री के नाम | हिंदी और अंग्रेजी दोनों में

इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू प्राचीन सभ्यताओं और उस समय के लोगों के जीवन पर प्रकाश डालते हैं। वे बताते हैं कि हालाँकि हमें इन सभ्यताओं के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन पत्थरों से बनी पुरानी इमारतों, मंदिरों और महलों के खंडहरों से हमें उस समय के लोगों के रहन-सहन और उनकी गतिविधियों के बारे में कुछ जानकारी मिलती है।

नेहरू बताते हैं कि यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि सबसे पहले इंसानों ने कहाँ बसावट की और सभ्यता का विकास किया। कुछ लोग मानते हैं कि एटलांटिक महासागर में एटलांटिस नामक एक उच्च सभ्यता वाला देश था, जो महासागर में समा गया, लेकिन इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। इसके अलावा, उन्होंने अमेरिका में प्राचीन सभ्यताओं की संभावना का भी उल्लेख किया, जो कोलंबस के अमेरिका की खोज से पहले वहाँ मौजूद थीं।

नेहरू बताते हैं कि यूरोप और एशिया, जिसे युरेशिया कहा जाता है, में प्राचीन सभ्यताएँ मेसोपोटामिया, मिस्र, क्रीट, भारत और चीन में विकसित हुईं। वे बताते हैं कि पुराने जमाने के लोग ऐसे स्थानों को बसावट के लिए चुनते थे, जहाँ पानी की प्रचुरता होती थी, जिससे खेती के लिए आवश्यक पानी उपलब्ध हो सके। इसलिए मेसोपोटामिया, मिस्र, और भारत की प्राचीन सभ्यताएँ नदियों के किनारे बसीं, जो उनके लिए भोजन और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करती थीं। इन नदियों को पवित्र और पूजनीय माना गया, जैसे मिस्र में नील नदी को "पिता नील" और भारत में गंगा नदी को "गंगा माई" कहा गया।

नेहरू इस बात पर जोर देते हैं कि इन नदियों की पूजा इसलिए की जाती थी क्योंकि ये जीवन के लिए आवश्यक जल और उपजाऊ मिट्टी प्रदान करती थीं, लेकिन लोगों ने समय के साथ इस पूजा के वास्तविक कारण को भुला दिया और केवल परंपरा का पालन करते रहे।

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पत्र 17 | सरग़ना राजा हो गया | पिता के पत्र पुत्री के नाम | हिंदी और अंग्रेजी दोनों में

इस पत्र में नेहरू बताते हैं कि कैसे सरगना (पुराने समय के मुखिया) राजा बने। वह समझाते हैं कि सरगना अपने कबीले या जाति का नेता और पिता होता था। जब सरगना की गद्दी वंशानुगत हो गई, तो वह राजा में परिवर्तित हो गया। राजा ने यह मान लिया कि पूरे देश की हर चीज़ उसकी है, और उसने खुद को पूरा देश समझ लिया। एक फ्रांसीसी राजा ने कहा था, "मैं ही राज्य हूँ," जो इस बात का प्रतीक है कि राजा खुद को जनता का सेवक समझने की बजाय, मालिक समझने लगे।

राजा यह भूल गए कि लोग उन्हें केवल इसलिए चुनते थे क्योंकि वे सबसे समझदार और अनुभवी व्यक्ति माने जाते थे, ताकि वे देश का बेहतर प्रबंधन कर सकें। लेकिन उन्होंने खुद को भगवान का चुना हुआ मानकर यह समझ लिया कि उनके शासन का अधिकार ईश्वर से मिला है, जिसे उन्होंने "राजाओं का दिव्य अधिकार" कहा।

इतिहास में, नेहरू ने समझाया कि कैसे इंग्लैंड, फ्रांस और रूस जैसी जगहों पर लोगों ने अपने राजाओं को उनकी तानाशाही के कारण उखाड़ फेंका। उन्होंने इंग्लैंड के राजा चार्ल्स प्रथम को हटाने और फ्रांस और रूस में बड़ी क्रांतियों का जिक्र किया, जहां लोगों ने अपने राजाओं को निष्कासित कर दिया।

नेहरू ने बताया कि अब ज्यादातर देशों में राजा नहीं हैं और वे गणराज्य बन गए हैं, जहां लोग अपने नेताओं को चुनते हैं। हालांकि, भारत में अभी भी राजा, महाराजा और नवाब हैं, जो जनता से वसूले गए टैक्स का दुरुपयोग करके शाही जीवन जीते हैं, जबकि उनकी प्रजा गरीबी में जीवन व्यतीत करती है और उनके बच्चों के लिए स्कूल तक नहीं हैं।

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पत्र 16 | सरग़ना का इख़्तियार कैसे बढ़ा | पिता के पत्र पुत्री के नाम | अंग्रेजी और हिंदी

इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू यह समझाते हैं कि प्राचीन मानव जातियों में संपत्ति और नेतृत्व का विकास कैसे हुआ। प्रारंभ में, सभी चीजें पूरी जाति की होती थीं, और किसी का व्यक्तिगत स्वामित्व नहीं होता था, यहां तक कि सरगना का भी नहीं। सरगना का काम केवल जाति की संपत्ति की देखभाल करना था। लेकिन जैसे-जैसे सरगना की ताकत बढ़ी, उसने जाति की संपत्ति को अपना मानना शुरू कर दिया। इस तरह, व्यक्तिगत स्वामित्व की अवधारणा का जन्म हुआ।

समय के साथ, सरगना का पद मौरूसी हो गया, यानी उसकी जगह उसके परिवार का ही कोई सदस्य, जैसे उसका बेटा या भाई, लेने लगा। इस बदलाव के साथ, संपत्ति भी सरगना के परिवार की मानी जाने लगी। इस प्रकार, समाज में अमीर और गरीब का अंतर पैदा हुआ, क्योंकि सरगना ने जाति की संपत्ति पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया। नेहरू अगले पत्र में इस विषय पर और अधिक लिखने की बात कहते हैं।

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शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

पत्र 15 | ख़ानदान का सरग़ना कैसे बना | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू अपनी बेटी इंदिरा को समझाते हैं कि समाज में सरगना की शुरुआत कैसे हुई। पहले के समय में, जब समाज सरल था, सब लोग बराबर थे और मिल-जुलकर काम करते थे। खेती और नई गतिविधियों के आने के बाद, किसी को काम बाँटने और संगठन करने की ज़रूरत पड़ी, और यह ज़िम्मेदारी सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को दी गई, जिसे सरगना या पितामह कहा गया।

शुरुआत में, सरगना भी बाकी लोगों की तरह काम करता था, लेकिन धीरे-धीरे उसने संगठन का काम करने के लिए शारीरिक श्रम करना छोड़ दिया और दूसरों से अलग हो गया। सरगना का काम सिर्फ संगठन करना और लोगों को काम का आदेश देना रह गया। समय के साथ, जब लड़ाइयाँ होने लगीं, सरगना का महत्व और भी बढ़ गया क्योंकि बिना नेता के लड़ाई संभव नहीं थी।

सरगना ने अपनी मदद के लिए और लोगों को भी संगठन करने के काम में लगाया, जिससे समाज दो हिस्सों में बंट गया—एक वो जो संगठन का काम करते थे और दूसरे वे जो सामान्य श्रम करते थे। इस तरह समाज में असमानता की शुरुआत हुई, और सरगना का दबदबा बढ़ता गया। अगले पत्र में नेहरू और विस्तार से इस प्रक्रिया को समझाएंगे।

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Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters
Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru 
Letters from a Father to his Daughter 
Nehru ke patra Indira ko
Nehru’s Letters to Indira
पाठ 15   सारांश "ख़ानदान का सरग़ना कैसे बना  
Lesson 15  Summary  "The Patriarch - How He Began"

पत्र 14 | खेती से पैदा हुई तब्दीलियां | पिता के पत्र पुत्री के नाम

 इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू खेती के आगमन से हुई तब्दीलियों के बारे में बताते हैं। वे समझाते हैं कि शुरुआती मानव समाजों में काम का बंटवारा बहुत कम था, सभी लोग शिकार करते थे और मुश्किल से खाने भर का इंतजाम कर पाते थे। धीरे-धीरे, मर्द और औरतों के बीच काम का बंटवारा हुआ, जहां मर्द शिकार करते थे और औरतें घर पर रहकर बच्चों और पालतू जानवरों की देखभाल करती थीं।

जब लोगों ने खेती करना सीखा, तो काम का बंटवारा और बढ़ गया। कुछ लोग खेती करने लगे, जबकि कुछ ने शिकार करना जारी रखा। इस बदलाव के साथ, लोगों ने एक जगह बसना शुरू कर दिया, क्योंकि खेती के लिए ज़मीन के पास रहना जरूरी हो गया। इस तरह गांव और कस्बों का विकास हुआ, क्योंकि खेती करने के बाद लोग एक जगह पर ही रहने लगे।

खेती से जीवन भी आसान हो गया, क्योंकि खेती से अधिक खाना मिल जाता था जिसे बाद में भी इस्तेमाल किया जा सकता था। नेहरू बताते हैं कि जब लोग केवल शिकार पर निर्भर थे, तो वे कुछ भी जमा नहीं कर सकते थे, लेकिन खेती के आने के बाद लोग फालतू अनाज जमा करने लगे। यही फालतू अनाज बाद में धन का आधार बना। आजकल के बैंक भी इसी तरह काम करते हैं, जहां लोग अपनी बचत जमा करते हैं।

नेहरू इस बात पर जोर देते हैं कि आज के समाज में भी धन का असमान बंटवारा है। कुछ लोग बिना मेहनत के भी अमीर बन जाते हैं, जबकि मेहनती लोग अक्सर गरीब रह जाते हैं। यह असमानता दुनिया में गरीबी का एक बड़ा कारण है। हालांकि, वे इंदिरा से कहते हैं कि यह समझना उनके लिए अभी मुश्किल हो सकता है, लेकिन वे आगे चलकर इसे बेहतर समझेंगी। इस पत्र का मुख्य संदेश यह है कि खेती से इंसानों को ज्यादा खाना मिला, जिसे वे जमा कर सकते थे, और इसी से अमीरी-गरीबी का भेद शुरू हुआ।

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रविवार, 3 नवंबर 2024

पत्र १३ | मज़हब की शुरुआत और काम का बँटवारा (अंग्रेजी में ) | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू अपनी बेटी को समझाते हैं कि मजहब (धर्म) और काम के बंटवारे की शुरुआत कैसे हुई।

नेहरू बताते हैं कि पुराने ज़माने में लोग हर चीज़ से डरते थे और सोचते थे कि उनके दुर्भाग्य का कारण क्रोधी और ईर्ष्यालु देवता हैं। उन्हें ये काल्पनिक देवता प्रकृति—जंगल, पहाड़, नदी, बादल—हर जगह दिखाई देते थे। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वे भोजन और बलिदान देते थे, यहाँ तक कि कभी-कभी इंसानों और बच्चों की भी बलि चढ़ा देते थे। यही भय से उत्पन्न विचार धर्म की शुरुआत का कारण बना। नेहरू कहते हैं कि कोई भी काम जो डर के कारण किया जाए, वह गलत है, और आज भी लोग धर्म के नाम पर आपस में लड़ते हैं।

इसके बाद नेहरू बताते हैं कि शुरुआती मनुष्य को हर दिन भोजन जुटाने की चुनौती होती थी। कोई भी आलसी व्यक्ति उस समय जीवित नहीं रह सकता था। जब जनजातियों का गठन हुआ, तो लोग मिलकर काम करने लगे, जिससे भोजन जुटाना आसान हो गया। सहयोग से वे बड़े-बड़े काम कर सकते थे, जो अकेले संभव नहीं थे। एक और बड़ा बदलाव कृषि के आगमन से आया। नेहरू ने चीटियों का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे वे अपने खाने के लिए घास हटाकर एक पौधे की रक्षा करती हैं, जो खेती की शुरुआत का संकेत हो सकता है।

कृषि के साथ भोजन प्राप्त करना आसान हो गया, और लोगों की ज़िंदगी पहले से कम कठिन हो गई। इसके साथ ही काम का बंटवारा भी शुरू हुआ। पहले सभी पुरुष शिकार करते थे, लेकिन कृषि के आने के बाद अलग-अलग प्रकार के काम उत्पन्न हुए—खेतों में काम करना, शिकार, और पशुओं की देखभाल करना। कुछ लोग एक काम करने लगे, जबकि कुछ अन्य काम।

नेहरू अंत में कहते हैं कि आज भी हर व्यक्ति किसी एक खास पेशे में विशेषज्ञ होता है—कोई डॉक्टर होता है, कोई इंजीनियर, बढ़ई, या दरज़ी। हर व्यक्ति अपने काम में कुशल होता है और यही काम का बंटवारा है, जिसकी शुरुआत कृषि के दौर में पुरानी जातियों के साथ हुई थी।

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पाठ 13 मज़हब की शुरुआत और काम का बँटवारा
Lesson 13  How Religion Began and Division of Labour

पत्र १२ | जातिओं का बनना (अंग्रेजी में ) | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में नेहरू लिखते हैं कि आदिम मानव पहले जानवरों की तरह था। धीरे-धीरे उसने तरक्की की और समूह में रहने लगा, जिससे उसे सुरक्षा मिली। जानवर भी समूहों में रहते हैं, जैसे भेड़, बकरियाँ, और हाथी। आदिम मानव ने भी समूहों में रहना शुरू किया और सहयोग करना सीखा। समूह में काम करने से प्रत्येक सदस्य को जाति की भलाई का ध्यान रखना पड़ता था। यदि कोई सदस्य जाति के हित में नहीं काम करता था, तो उसे बाहर कर दिया जाता था।

समूह में व्यवस्थित ढंग से काम करने के लिए एक नेता की आवश्यकता थी। सबसे मजबूत व्यक्ति को नेता चुना जाता था, जो आंतरिक झगड़ों को नियंत्रित करता था। आदिम जातियाँ बड़े परिवारों की तरह थीं और जैसे-जैसे ये बढ़ी, जातियाँ भी बढ़ीं। प्रारंभिक जीवन कठिन था; न घर था, न कपड़े, और भोजन के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता था। वे प्राकृतिक आपदाओं को देवताओं का क्रोध मानते थे और बलि देकर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते थे, जिसे आज हम अज्ञानता मानते हैं।

इसी पत्र से: "इस तरह पुराने जमाने के आदमियों ने सम्यता में जो पहिली तरक़्की की वह मिलकर झुंडों में रहना था। इस तरह - जातियों (फिरकों) की बुनियाद पड़ी. वे साथ-साथ काम करने लगे. वे एक दूसरे की मदद करते रहते थे. हर एक आदमी पहिले अपनी जाति का खयाल करता था ओर तब अपना. अगर जाति पर कोई संकट आता तो हरएक आदमी जाति की तरफ से लड़ता था.  और अगर कोई आदमी जाति के लिए लड़ने से इनकार करता तो निकाल बाहर किया जाता था."

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पाठ 12 जातिओं का बनना
Lesson 12 The Formation of Tribes

सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

पत्र #११ | सभ्यता क्या है? | पिता के पत्र पुत्री के नाम

"सभ्यता क्या है?" में जवाहरलाल नेहरू सभ्यता के अर्थ पर विचार करते हैं और इसे बर्बरता  (जंगली अवस्था) के विपरीत बताते हैं। वह समझाते हैं कि सभ्यता का अर्थ है सुधार और अच्छी आदतें अपनाना, जबकि वर्बरिटी वह अवस्था है जब मनुष्य लगभग जानवरों जैसा होता है। वे सवाल उठाते हैं कि किस आधार पर किसी व्यक्ति या समाज को सभ्य कहा जा सकता है। यूरोप के लोग एशिया और अफ्रीका के लोगों को जंगली समझते हैं, लेकिन नेहरू बताते हैं कि कपड़े और ताकत जैसी चीजें सभ्यता का मापदंड नहीं हो सकतीं।

नेहरू प्रथम विश्व युद्ध का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि कैसे देशों ने लाखों लोगों की हत्या की और इसे सभ्यता नहीं कहा जा सकता। वे इसे जंगली व्यवहार की तरह मानते हैं और इस विचार को खारिज करते हैं कि युद्ध में शामिल देश जैसे इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस आदि सभ्य हैं, भले ही उनके पास बहुत सी अच्छी चीजें और लोग हों।

अंत में, नेहरू कहते हैं कि सभ्यता की असली पहचान सिर्फ भव्य इमारतों या कला में नहीं, बल्कि उन लोगों में है जो स्वार्थी नहीं हैं और सबकी भलाई के लिए मिलकर काम करते हैं। मिलजुल कर काम करना, खासकर सामूहिक भलाई के लिए, सभ्यता की सबसे बड़ी निशानी है।


इसी पत्र से :  "अब तुम कहोगी कि सभ्यता का मतलब समझना आसान नहीं है, ओर यह ठीक है। यह बहुत ही मुश्किल मामला है.  अच्छी-अच्छी इमारतें, अच्छी-अच्छी तसवीरें और किताबें और तरह-तरह की दूसरी और खूबसूरत चीज़ें ज़रूर सभ्यता की पहचान हैं, मगर एक भला आदमी जो स्वार्थी नहीं है और सब की भलाई के लिए दूसरों के साथ मिलकर काम करता है सभ्यता की इससे भी बड़ी पहचान है.  मिलकर काम करना अकेले काम करने से अच्छा है, और सब की भलाई के लिए एक साथ मिलकर काम करना सबसे अच्छी बात है ."

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Nehru’s Letters to Indira
पाठ 11 सभ्यता क्या है? 
Lesson 11 What is Civilization?

शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

पत्र #१० | ज़बानों का आपस में रिश्ता | पिता के पत्र पुत्री के नाम

 इस पत्र में, नेहरू बताते हैं कि आर्य विभिन्न देशों में फैल गए और उनकी एक भाषा समय के साथ बदलकर कई भाषाओं में विभाजित हो गई। अलग-अलग इलाकों और स्थितियों के कारण इन भाषाओं में अंतर आ गया, लेकिन फिर भी कुछ शब्द, जैसे "पिता" और "माता," विभिन्न भाषाओं में समान रहे। यह दर्शाता है कि ये भाषाएँ कभी एक ही परिवार से निकली होंगी।

नेहरू भाषा के अध्ययन को रोचक मानते हैं, क्योंकि इससे हमें अपने पूर्वजों और हमारी साझा विरासत का पता चलता है। वे यह भी बताते हैं कि समय के साथ लोग अपने पुराने संबंधों को भूल गए और हर देश के लोग खुद को सबसे श्रेष्ठ समझने लगे। नेहरू इस प्रकार की घमंड भरी सोच की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि हर देश में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं। हमें जहाँ अच्छाई मिले उसे अपनाना चाहिए और जहाँ बुराई हो उसे दूर करना चाहिए।

नेहरू यह भी बताते हैं कि भारत की स्थिति खराब है और लोगों को दुखी होने से बचाने के लिए हमें उनके जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। भारतीयों को अपने देश के लिए काम करना चाहिए, लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि हम एक बड़े वैश्विक परिवार का हिस्सा हैं। उनका मानना है कि हमें सारी दुनिया को एक खुशहाल और शांतिपूर्ण स्थान बनाने का प्रयास करना चाहिए।

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गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

पत्र ९: "आदमियों की क़ौमें और भाषाएँ" पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में, नेहरू मानव जातियों और भाषाओं की उत्पत्ति और विकास पर चर्चा करते हैं। वह बताते हैं कि शुरुआती मानव शायद बर्फीले युग के दौरान गर्म इलाकों में रहते थे और खानाबदोश थे, जो भोजन और चारागाह की तलाश में घूमते रहते थे। धीरे-धीरे लोग नदियों के पास बसने लगे, जिससे भारत, मेसोपोटामिया, मिस्र और चीन जैसी जगहों पर सभ्यताओं का विकास हुआ।

भारत में सबसे पुरानी ज्ञात जाति द्रविड़ थी, जिसके बाद आर्य और पूरब में मंगोल जाति के लोग आए। दक्षिण भारत के लोग मुख्यतः द्रविड़ों के वंशज हैं, जो उत्तर भारत के लोगों की तुलना में गहरे रंग के हैं। नेहरू बताते हैं कि आर्य जाति मध्य एशिया से निकलकर यूरोप और एशिया में फैली और कई स्थानों में बसी। यद्यपि आज इन जातियों में काफी अंतर है, लेकिन वे सभी एक ही पूर्वजों—आर्यों—से संबंधित हैं। समय के साथ, विभिन्न जातियों और भाषाओं का मिश्रण हुआ।

नेहरू विभिन्न जातियों को आर्य, मंगोल (पूर्वी एशिया के लोग), और अफ्रीकी आदिवासियों में विभाजित करते हैं, और यहूदियों और अरबों को अलग जाति के रूप में देखते हैं। वे भाषाओं के माध्यम से जातियों की पहचान के महत्व पर जोर देते हैं। आर्यों की संस्कृत भाषा से लैटिन, ग्रीक, अंग्रेज़ी, हिंदी, बंगाली जैसी भाषाएँ निकलीं। इसी तरह, चीनी और शेमितिक भाषाओं के परिवारों की उत्पत्ति भी स्पष्ट की गई है। दक्षिण भारत की भाषाएँ—तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़—द्रविड़ परिवार से हैं और अत्यंत प्राचीन हैं।

इसी पत्र से: "उस ज़माने में पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप में एक नई जाति पैदा हो रही थी। यह आर्य कहलाती थी।संस्कृत में आर्य शब्द का अर्थ है शरीफ आदमी या उँचे कुल का आदमी। संस्कृत आर्यों की एक जबान थी इसलिए इससे मालूम होता है कि वे लोग अपने को बहुत शरीफ ओर खानदानी समझते थे। ऐसा मालूम होता है कि वे लोग भी आजकल के आदमियों की ही तरह शेखीबाज़ थे। तुम्हें मालूम है कि अँगरेज़ अपने को दुनिया में सब से बढ़कर समझता है, फ्रांसीसी का भी यही खयाल है कि मैं ही सबसे बड़ा हूँ, इसी तरह जर्मन, अमरीकन और दूसरी जातियाँ भी अपने ही बड़प्पन का राग अलापते हैं।"

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बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

पत्र ८: "तरह-तरह की कौमें क्योंकर बनीं" पिता के पत्र पुत्री के नाम

 इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू यह समझाते हैं कि कैसे विभिन्न मानव जातियाँ (कौमें) बनीं और उनकी शारीरिक विशेषताएँ, विशेष रूप से त्वचा का रंग, कैसे समय के साथ वातावरण के कारण बदलीं। वे नए पत्थर युग के लोगों का उल्लेख करते हैं, जिनसे आज की कई मानव जातियाँ निकलीं हो सकती हैं। नेहरू बताते हैं कि आज दुनिया में गोरे, काले, पीले, भूरे सभी प्रकार के लोग हैं, लेकिन इन रंगों के आधार पर जातियों को अलग-अलग करना आसान नहीं है, क्योंकि मानव जातियाँ आपस में मिश्रित हो चुकी हैं।

नेहरू बताते हैं कि इन विभिन्नताओं के पीछे मुख्य कारण जलवायु और आसपास के माहौल के अनुसार अनुकूलन है। वे उदाहरण देते हैं कि उत्तर में ठंडे इलाकों में रहने वाले लोग गोरे होते हैं, जबकि विषुवत रेखा के पास गर्म इलाकों में रहने वाले लोग काले होते हैं। वे इस बात का ज़िक्र करते हैं कि जैसे धूप में रहने से त्वचा सांवली हो जाती है, वैसे ही जो लोग सदियों तक गर्म इलाकों में रहते हैं, उनकी त्वचा काली हो जाती है।

नेहरू इस बात पर ज़ोर देते हैं कि त्वचा का रंग सिर्फ़ जलवायु के कारण होता है और इसका किसी व्यक्ति की अच्छाई या काबिलियत से कोई लेना-देना नहीं है। कश्मीरियों का उदाहरण देते हुए, वे बताते हैं कि ठंडे इलाकों में रहने वाले लोग गोरे होते हैं, लेकिन अगर वे गर्म इलाकों में कई पीढ़ियों तक रहें, तो उनका रंग भी गहरा हो जाता है। अंत में, नेहरू यह बताते हैं कि भारत में उत्तर के लोग गोरे होते हैं और दक्षिण की ओर जाते-जाते लोग काले होते जाते हैं, जो मुख्य रूप से जलवायु का असर है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि भारत में कई अलग-अलग जातियाँ आईं और समय के साथ वे आपस में मिल गईं, जिससे यह बताना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति किस मूल जाति से संबंधित है।

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सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

पत्र ७: "शुरू के आदमी" पिता के पत्र पुत्री के नाम

 "इन्हीं नए पाषाण-युग केआदमियों ने एक बहुत बड़ी चीज़ निकाली.  यह खेती करने का तरीका था। उन्होंने खेतों को जोतकर खाने की चीजें पेदा करनी शुरू कीं. उनके लिए यह बहुत बड़ी बात थी. अब उन्हें आसानी से खाना मिल जाता था, इसकी जरूरत न थी कि वे रात दिन जानवरों का शिकार करते रहें।अब उन्हें सोचने ओर आराम करने की ज़्यादा फुर्सत मिलने लगी. ओर उन्हें जितनी ही ज़्यादा फुर्सत मिलती थी, नई चीजों ओर तरीकों के निकालने में वे उतनी ही ज़्यादा तरक़्की करते थे. "

इस पत्र नेहरू प्रारंभिक मानव के विकास और उनकी बढ़ती बुद्धिमानी पर चर्चा करते हैं, जिसने उन्हें जानवरों से अधिक मजबूत और चालाक बना दिया। शुरू में, इंसान के पास कोई विशेष हथियार नहीं थे, वे केवल पत्थर फेंकते थे। बाद में उन्होंने पत्थर के औजार जैसे कुल्हाड़ियाँ और भाले बनाए।

बर्फ का युग समाप्त होने के बाद, लोग गर्म होते मौसम में फैलने लगे। उस समय न तो मकान थे, न खेती। लोग फल खाते थे और जानवरों का शिकार करते थे। इन शुरुआती मनुष्यों को पेंटिंग करना भी आता था, और वे गुफाओं की दीवारों पर जानवरों की चित्रकारी करते थे। इस समय के लोग पाषाण युग के नाम से जाने जाते थे, क्योंकि वे सभी उपकरण पत्थरों से बनाते थे।

धीरे-धीरे, नया पत्थर युग (नवपाषाण युग) आया, जिसमें इंसान ने खेती करना सीखा, जिससे उन्हें भोजन के लिए शिकार करने की आवश्यकता कम हो गई। अब उनके पास सोचने और आराम करने का अधिक समय था, जिससे नई चीज़ों की खोज हुई। उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाए और खाना पकाने लगे।

इन लोगों ने जानवरों को पालना भी सीखा और कपड़े बुनने की कला भी विकसित की। वे अक्सर झीलों के बीच झोपड़ियाँ बनाते थे ताकि जंगली जानवरों और अन्य लोगों से सुरक्षित रह सकें।

नेहरू बताते हैं कि हमें इन प्राचीन लोगों के बारे में कैसे पता चला, क्योंकि उन्होंने कोई किताबें नहीं लिखी थीं। पुरातत्वविदों ने उनकी हड्डियों और उपकरणों को खोजकर यह जानकारी इकट्ठी की है।

आगे चलकर, ताँबे और काँसे के उपकरण बनने लगे और लोगों ने सोने के गहने भी पहनने शुरू किए। नेहरू भूमध्य सागर के बनने की कहानी भी बताते हैं, जिसे कई संस्कृत ग्रंथों और बाइबिल में "महान बाढ़" के रूप में उल्लेखित किया गया है, जहाँ अटलांटिक महासागर का पानी भूमध्य सागर में भर आया, जिससे एक बड़ी आपदा आई होगी।

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पत्र ६ "आदमी कब पैदा हुआ" पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में नेहरू जीवों के क्रमिक विकास की प्रक्रिया का वर्णन करते हैं, यह बताते हुए कि कैसे जानदार प्राणी लाखों सालों तक अपने वातावरण के अनुसार ढलते रहे और नए गुण विकसित करते गए। शुरुआत में, जानवरों के पास हड्डियाँ नहीं थीं, लेकिन जीवित रहने के लिए उन्होंने रीढ़ की हड्डी विकसित की। इसी तरह, मछलियाँ हजारों अंडे देती हैं, पर उनकी देखभाल नहीं करतीं, जबकि ऊँचे स्तर के जानवरों ने कम बच्चे पैदा करने के साथ-साथ उनकी बेहतर देखभाल की।

नेहरू इस बारे में बात करते हैं कि स्तनधारी जानवर अंडे नहीं देते, बल्कि पूरी तरह से विकसित बच्चे पैदा करते हैं, जिन्हें मां अपना दूध पिलाती है। जितने ऊँचे दर्जे के जानवर होते हैं, उतनी ही अधिक उनकी संतान के प्रति ममता होती है। आदमी को सबसे ऊँचा जानवर माना जाता है क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं और उनकी देखभाल करते हैं।

नेहरू ने आगे बताया कि प्रारंभिक इंसान बंदरों से मिलते-जुलते थे और कठोर परिस्थितियों में जीते थे, जैसे हिमयुग के दौरान। उन्होंने हाइडल्बर्ग के प्रारंभिक मनुष्यों का उल्लेख किया, जिनकी खोपड़ी वैज्ञानिकों ने पाई थी। उस समय की कठिनाइयों को देखते हुए, मनुष्यों को बड़े जानवरों से हमेशा खतरा रहता था।

हालाँकि, धीरे-धीरे मनुष्य ने अपनी बौद्धिक शक्ति और आग की खोज जैसी उपलब्धियों से खुद को मजबूत बनाया। आग ने मनुष्य को ठंड से बचाया और जानवरों से सुरक्षा दी। नेहरू इस बात पर जोर देते हैं कि बुद्धिमता ने मनुष्यों को जानवरों से अलग किया और उन्हें दुनिया पर प्रभुत्व जमाने का मार्ग प्रशस्त किया।

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बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

पत्र ५ - "जानदार कब पैदा हुए" पिता के पत्र पुत्री के नाम पत्र

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हिंदी में :



इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू बताते हैं कि जानवरों का विकास और उनके वातावरण के अनुसार खुद को ढालने की प्रक्रिया कैसे हुई। वे समझाते हैं कि पृथ्वी पर सबसे पहले छोटे समुद्री जानवर और पौधे थे, जो केवल पानी में ही जीवित रह सकते थे। धीरे-धीरे, जिन जानवरों की खाल सख्त थी, वे सूखी जमीन पर कुछ समय के लिए जीवित रह पाते थे, जबकि नरम खाल वाले जानवर गायब होते गए। यह प्रक्रिया बताती है कि जानवर अपने आस-पास के वातावरण के अनुसार अपने आप को ढाल लेते हैं।

नेहरू उदाहरण देते हैं कि ठंडे क्षेत्रों में जानवर और पक्षी सफेद हो जाते हैं, जबकि गर्म क्षेत्रों में हरे या चमकीले रंग के होते हैं ताकि वे अपने दुश्मनों से बच सकें। इसी प्रकार, जानवर जैसे चीतों की धारियाँ उन्हें जंगल में छिपने में मदद करती हैं।

जब पृथ्वी ठंडी और सूखी होने लगी, तो जानवर भी बदलते गए। पहले समुद्री जानवर आए, फिर ऐसे जानवर जो जमीन और पानी दोनों में रह सकते थे, जैसे मगरमच्छ और मेंढक। फिर केवल जमीन पर रहने वाले जानवर और उड़ने वाले पक्षी विकसित हुए। नेहरू मेंढक का उदाहरण देकर बताते हैं कि कैसे मेंढक अपने जीवन में पानी से जमीन पर रहने वाले जानवर में बदलता है, जो यह दिखाता है कि जानवरों ने पानी से जमीन पर कैसे कदम रखा।

नेहरू बताते हैं कि पुराने जंगलों ने समय के साथ कोयले का रूप ले लिया, जो आज हमें खानों से मिलता है। शुरुआती जमीन पर रहने वाले जानवरों में विशालकाय साँप, छिपकलियाँ और घड़ियाल थे, जिनमें से कुछ 100 फीट लंबे होते थे। इसके बाद, स्तनधारी जानवरों का विकास हुआ, जो अपने बच्चों को दूध पिलाते थे।


आखिर में, नेहरू इस बात का उल्लेख करते हैं कि मनुष्य और बंदर का आपस में संबंध है, और यह संभावना है कि इंसान पहले एक उन्नत बंदर था। वे हमें याद दिलाते हैं कि भले ही आज मनुष्य खुद को जानवरों से अलग समझता है, लेकिन हम बंदरों और बनमानुसों के करीबी रिश्तेदार हैं, और कई बार हमारे व्यवहार में भी उनकी झलक दिखाई देती है।

रविवार, 13 अक्टूबर 2024

पत्र ४ - "जानदार चीज़ें केसे पैदा हुई" पिता के पत्र पुत्री के नाम पत्र

 

अंग्रेजी में :  

हिंदी वीडियो : 


यह पत्र जानदार चीज़ों के उत्पत्ति के बारे में है। इसमें नेहरू ने बताया है कि पहले ज़मीन इतनी गर्म थी कि कोई भी जानदार चीज़ वहाँ रह नहीं सकती थी। फिर धीरे-धीरे जानदार चीज़ों का आना शुरू हुआ।

नेहरू ने जानदार और बेजान चीज़ों के बीच फर्क समझाने की कोशिश की है, जिसमें पौधे और जानवर दोनों शामिल हैं। उन्होंने बताया कि पुराने समय में समुद्र में पहले नरम, मुरब्बे की जैसी चीज़ें थीं जिनमें न हड्डी थी न खोल। ये चीज़ें धीरे-धीरे विकसित हुईं और उनके बाद विभिन्न प्रकार के जानवर और पौधे उत्पन्न हुए।

पत्र में यह भी बताया गया है कि पुरानी चट्टानों में जानवरों की हड्डियाँ मिलती हैं, जो यह साबित करती हैं कि विभिन्न जानवरों के उत्पत्ति का एक क्रम था। सबसे पहले साधारण जानवर जैसे घोंघे पैदा हुए, फिर धीरे-धीरे ऊँचे दर्जे के जानवर, जैसे हाथी और साँप, उत्पन्न हुए।


अंत में, नेहरू ने यह भी उल्लेख किया कि समुद्र की चट्टानों और हड्डियों से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ज़मीन पर जानदार चीज़ें कैसे विकसित हुईं और आगे की चिट्ठी में वे इस पर और विस्तार से विचार करेंगे।

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

पिता के पत्र पुत्री के नाम | पत्र १ , २ , ३

मुंशी प्रेमचंद द्वारा हिंदी में अनुवादित पत्रों को रिकॉर्ड करने के बाद मैंने इन्हें जवाहरलाल नेहरू की लिखी अंग्रेजी में रिकॉर्ड करना शुरू किया है ! ये हैं पहले तीन पत्र:  












शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

पिता के पत्र पुत्री के नाम | सम्पूर्ण हिंदी ऑडियोबुक | जवाहरलाल नेहरू | मुंशी प्रेमचंद


“पिता के पत्र पुत्री के नाम, 1929” लेखक - जवाहरलाल नेहरू; हिंदी अनुवाद - मुंशी प्रेमचंद; स्वर - गिरिबाला जोशी

ये पत्र जवाहरलाल नेहरू ने जेल से अपनी बेटी इंदिरा प्रियदर्शिनी (बाद में गांधी) को लिखे थे. इन पत्रों में आप सुन सकते हैं इस दुनिया के और अपने देश भारत के प्रागैतिहासिक काल यानि prehistoric era और आरम्भिक इतिहास की कहानी. इनमें कही बातें, छोटे-बड़े सभी लोगों का ज्ञानवर्धन करती हैं और वैश्विक एकत्व और बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देती हैं. ये ऑडीयो-बुक पिछले कई वीडियोस की ऑडियो को जोड़कर बनाई गयी है. यदि आप विज़ुअल्स- चित्र, वीडियोस, इत्यादि - देखना चाहते हैं तो प्लेलिस्ट में सम्मिलित वीडियोस को देखें।! आपको ये ऑडीयो-बुक इस चैनल पर नेहरूजी की ओरिजिनल अंग्रेजी में भी मिल जाएगी जो कि AI generated आवाज में हैं. मेरी अपनी आवाज में इन पत्रों को अंग्रेजी में रिकॉर्ड करने का प्रयास जारी है . विषय-सूची प्रस्तावना 0:35 १. संसार पुस्तक है 2:03 २. शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया 8:01 ३. ज़मीन कैसे बनी 13:55 ४. जानदार चीज़ें कैसे पैदा हुई 19:15 ५. जानवर कब पैदा हुए 26:56 ६. आदमी कब पैदा हुआ 32:11 ७. शुरू के आदमी 38:54 ८. तरह-तरह की कौमें क्योंकर बनीं 47:25 ९. आदमियों की कौमें और ज़बानें 53:50 १०. ज़बानों का आपस में रिश्ता 59:59 ११. सभ्यता क्‍या है? 1:04:59 १२. जातियों का बनना 1:08:38 १३. मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा 1:13:07 १४. खेती से पैदा हुई तब्दीलियाँ 1:17:59 १५. खानदान का सरगना कैसे बना 1:21:52 १६. सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा 1:25:35 १७. सरगना राजा हो गया 1:29:06 १८. शुरू का रहन-सहन 1:33:29 १९. पुरानी दुनिया के बड़े बड़े शहर 1:38:02 २०. मिस्र और क्रीट 1:42:02 २१. चीन और हिंदुस्तान 1:47:24 २२. समुद्री सफर और व्यापार 1:51:31 २३. भाषा, लिखावट और गिनती 1:58:09 २४. आदमियों के अलग-अलग दरजे. 2:02:42 २५. राजा, मंदिर और पुजारी 2:06:47 २६. पीछे की तरफ एक नज़र 2:12:20 २७. पत्थर हो जानेवाली मछलियों की तसवीरें 2:15:11 २८. फॉसिल और पुराने खंडहर 2:16:45 २९. आर्यों का हिन्दुस्तान में आना 2:19:48 ३०. हिंदुस्तान के आर्य कैसे थे 2:23:45 ३१. रामायण और महाभारत 2:28:45

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 29 पत्र 31 | रामायण और महाभारत | The Ramayana and the Mahabharata

 


इस पत्र में नेहरू ने रामायण और महाभारत की महत्ता पर चर्चा की है। वे बताते हैं कि वेदों के युग के बाद काव्यों का युग आया, जिसमें दो प्रमुख महाकाव्य—रामायण और महाभारत—लिखे गए। नेहरू ने बताया कि इस युग में आर्य लोग उत्तर भारत से विंध्य पर्वत तक फैल गए थे, और इस क्षेत्र को "आर्यावर्त" कहा जाता था, जो चाँद के आकार की तरह दिखता था। रामायण की कथा राम और सीता के साथ लंका के राजा रावण की लड़ाई की है, जिसे वाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा, और तुलसीदास ने हिंदी में "रामचरितमानस" के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने यह भी कहा कि रामायण में हो सकता है कि दक्षिण भारत के लोगों और आर्यों की लड़ाई का चित्रण हो। महाभारत, जो रामायण के काफी बाद लिखा गया, एक विशाल ग्रंथ है और इसमें आर्यों के आपसी संघर्ष की कथा है। लेकिन इसके अतिरिक्त, इसमें गहरी विचारधारा और सुंदर कहानियाँ हैं, जिनमें भगवद गीता एक अनमोल रत्न है। नेहरू ने यह भी बताया कि ये ग्रंथ हजारों साल पुरानी होने के बावजूद आज भी जीवित हैं और लोगों पर प्रभाव डालते हैं। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 31 रामायण और महाभारत अध्याय ३१ रामायण और महाभारत Lesson 31 The Ramayana and the Mahabharata

रविवार, 29 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 28 पत्र 30 | हिन्दुस्तान के आर्य कैसे थे? |What Were the Aryans in India Like?


इस पत्र में, नेहरू बताते हैं कि आर्य हजारों साल पहले हिन्दुस्तान आए थे, शायद कई चरणों में, जहां वे लंबे काफिलों में यात्रा करते हुए आए। ज़्यादातर आर्य उत्तर पश्चिम की पहाड़ियों से आए, जबकि कुछ शायद समुद्र के रास्ते सिंधु नदी तक पहुंचे।

आर्यों के जीवन और संस्कृति की जानकारी उनकी प्राचीन पुस्तकों, खासकर वेदों, से मिलती है। वेद दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तकों में गिनी जाती हैं, जिन्हें शुरू में लिखा नहीं गया था, बल्कि लोग उन्हें याद करके गाते और सुनाते थे। ये संस्कृत में लिखी गईं और आज भी उनकी सुंदरता के कारण प्रशंसा की जाती है। वेदों में उस समय के ऋषियों और मुनियों का ज्ञान संकलित था। नेहरू बताते हैं कि वे लोग आज के समय के लोगों से अधिक बुद्धिमान माने जाते हैं और उनकी पुस्तकें आज भी आदर के साथ देखी जाती हैं। ऋग्वेद, सबसे पुराना वेद, भजनों और गीतों से भरा है, जो दर्शाता है कि पुराने आर्य खुशमिजाज और हंसमुख थे। वे अपनी स्वतंत्रता को बहुत महत्व देते थे और गुलामी से बेहतर मरना समझते थे। आर्य अच्छे योद्धा थे और विज्ञान और कृषि में भी माहिर थे। वे नदियों और जानवरों, खासकर गाय और बैल, का सम्मान करते थे, क्योंकि ये उनकी खेती और जीवन में सहायक थे। गाय को उनकी उपयोगिता के कारण महत्व दिया गया, लेकिन समय के साथ लोग इसका असली कारण भूलकर उसकी पूजा करने लगे। आर्य अपनी जाति पर गर्व करते थे और दूसरों से मिलजुल कर रहने से बचते थे। उन्होंने नियम बनाए ताकि अन्य जातियों से विवाह न हो सके। यह धीरे-धीरे जाति व्यवस्था में बदल गया, जिसे नेहरू आज के समय में निरर्थक मानते हैं और कहते हैं कि यह प्रथा अब घट रही है। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 30 हिन्दुस्तान के आर्य कैसे थे? अध्याय ३० हिन्दुस्तान के आर्य कैसे थे? Lesson 30 What Were the Aryans in India Like?

गुरुवार, 26 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 27 पत्र 29 | आर्यों का हिन्दुस्तान में आना The Aryans Come to India


 

इस पत्र में नेहरू आर्यों के भारत आने और उससे हुई सांस्कृतिक बदलावों के बारे में बताते हैं। वे समझाते हैं कि आर्यों के आने से पहले भारत में एक प्राचीन सभ्यता थी, जैसे मिस्र में थी, और उस समय भारत में रहने वाले लोग द्रविड़ कहलाते थे। आज के दक्षिण भारत में उनके वंशज रहते हैं।

आर्य मध्य एशिया से आए और खाने की कमी के कारण अन्य देशों में फैल गए, जिनमें से कुछ ईरान और यूनान गए, जबकि कुछ कश्मीर के पहाड़ों के रास्ते भारत आए। आर्य एक ताकतवर योद्धा जाति थे जिन्होंने द्रविड़ों को दक्षिण की तरफ धकेल दिया। शुरुआत में आर्य केवल पंजाब और अफगानिस्तान में बस गए थे, जिसे उस समय "ब्रह्मावर्त" कहा जाता था। आर्यों का विस्तार धीरे-धीरे गंगा और यमुना के मैदानों तक हुआ, जिसे उन्होंने "आर्यावर्त" नाम दिया। वे नदियों के किनारे बसे, और काशी (बनारस), प्रयाग जैसे शहर नदी तटों पर ही बने। नेहरू यह भी बताते हैं कि आर्यों के भारत में आने के बारे में पुरानी संस्कृत किताबों से जानकारी मिलती है, जैसे वेदों से, जिनमें ऋग्वेद सबसे पुराना है। इसके बाद पुराण, रामायण, और महाभारत जैसे ग्रंथों से आर्यों की सभ्यता और विस्तार के बारे में और जानकारी मिलती है। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 29 आर्यों का हिन्दुस्तान में आना अध्याय २९ आर्यों का हिन्दुस्तान में आना Lesson 29 The Aryans Come to India

मंगलवार, 24 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 26 पत्र 26, 27, 28 | पीछे की तरफ एक नज़र, फॉसिल और पुराने खंडहर

 


पत्र 26 में जवाहरलाल नेहरू जरा ठहर कर पृथ्वी और मानव सभ्यता के लंबे इतिहास पर विचार करते हैं। वह कहते हैं कि कुछ समय के लिए वह नई बातें नहीं लिखेंगे, बल्कि इंदिरा से उम्मीद करते हैं कि वह पहले से लिखी गई बातों पर ध्यान दे। नेहरू बताते हैं कि उन्होंने अपने खतों में करोड़ों साल की यात्रा की है, जब पृथ्वी सूरज का हिस्सा थी और धीरे-धीरे ठंडी होकर अलग हुई। इसके बाद जीवन का जन्म हुआ, जो लाखों-करोड़ों सालों में धीरे-धीरे विकसित हुआ। नेहरू इंदिरा को समझाते हैं कि जीवन का विकास एक बहुत लंबी प्रक्रिया थी, और इस विशाल समय की कल्पना करना मुश्किल है। वह इंदिरा को याद दिलाते हैं कि इंसान का जीवन इन अनगिनत वर्षों की तुलना में कितना छोटा और मामूली है, और हमें छोटी-छोटी बातों से परेशान नहीं होना चाहिए। नेहरू यह भी बताते हैं कि शुरुआती समय में सिर्फ जानवर थे, और इंसान बहुत कमजोर और छोटा प्राणी था। धीरे-धीरे, हज़ारों सालों में इंसान मजबूत और होशियार बन गया और पृथ्वी पर अन्य जानवरों पर हावी हो गया। नेहरू यह भी बताते हैं कि असली मानव इतिहास और सभ्यता की उन्नति पिछले तीन-चार हजार सालों में हुई है। जब इंदिरा बड़ी होगी, तो वह इस इतिहास को विस्तार से पढ़ेगी, और वह इन पत्रों में केवल एक झलक दिखा रहे हैं ताकि इंदिरा को इस छोटे से संसार में इंसान की यात्रा के बारे में कुछ जानकारी हो। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira

रविवार, 22 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 25 | राजा, मन्दिर और पुजारी | Kings and Temples and Priests



इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू समाज की संरचना पर चर्चा करते हुए किसानों, राजा और पुजारियों की भूमिकाओं को समझाते हैं। वे बताते हैं कि किसान और मजदूर, जो भोजन उगाने और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगे रहते थे, सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी शोषित होते थे। उनका अधिकतर उत्पादन राजा और जमींदारों को चला जाता था, जबकि वे खुद बहुत कम पाते थे।

इसके बाद नेहरू धर्म की उत्पत्ति पर बात करते हैं, बताते हुए कि प्रारंभिक मनुष्यों ने प्राकृतिक शक्तियों और अदृश्य चीजों से डरकर देवता बनाए। इन देवताओं की पूजा के लिए मंदिर बनाए गए, जिनमें डरावनी और भयानक मूर्तियाँ होती थीं। लोग इन मूर्तियों की पूजा इसलिए करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि देवता क्रोधित और कठोर होते हैं। पुजारी, जो उस समय के शिक्षित लोग थे, राजा के सलाहकार बन गए। वे केवल धार्मिक कार्य ही नहीं करते थे बल्कि डॉक्टर, विद्वान, और कभी-कभी जादूगर भी होते थे, जिससे लोग उनका सम्मान और डर करते थे। पुजारी अक्सर लोगों को धोखा देते थे, लेकिन उन्होंने समाज को कुछ हद तक आगे बढ़ाने में भी मदद की। नेहरू अंत में बताते हैं कि कुछ समाजों में पहले पुजारी शासन करते थे, लेकिन बाद में राजा, जो लड़ाई में कुशल होते थे, ने उन्हें हटा दिया। मिस्र के फिरऊन जैसे कुछ शासक खुद को आधा देवता मानते थे, और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें पूर्ण देवता के रूप में पूजा जाता था। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 25 राजा, मन्दिर और पुजारी अध्याय २५ राजा, मन्दिर और पुजारी Lesson 25 Kings and Temples and Priests

शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 24 | आदमियों के अलग-अलग दरजे | Different Classes of People

 

इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू समझाते हैं कि इतिहास सिर्फ लड़ाइयों और राजाओं के नामों और तारीखों को याद करने का विषय नहीं है। इतिहास का असल उद्देश्य यह है कि वह हमें यह बताए कि लोग कैसे रहते थे, क्या सोचते थे, और किन कठिनाइयों का सामना करते थे। अगर हम इतिहास को इस नज़रिए से पढ़ें, तो हम उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं और अगर हम भी किसी मुश्किल स्थिति में हों, तो इतिहास से मदद लेकर उस पर काबू पा सकते हैं।

नेहरू फिर प्राचीन समाज में विभिन्न वर्गों के बारे में बात करते हैं। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे समाज का विकास हुआ, काम का विभाजन हुआ और विभिन्न वर्ग बने। इनमें राजा और उसके दरबारी, मंदिर के पुजारी, व्यापारी, कारीगर और सबसे बड़ा वर्ग किसानों और मजदूरों का था। यह वर्ग विभाजन इस बात को दर्शाता है कि कैसे शासक और प्रबंधक वर्गों ने अधिक शक्ति और संपत्ति हासिल की, जबकि मजदूर वर्ग का शोषण होता रहा।

अंत में, नेहरू बताते हैं कि इन वर्गों की समझ से हम इतिहास को गहराई से जान सकते हैं और यह जान सकते हैं कि समाज कैसे विकसित हुआ या नहीं हुआ।


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पाठ 24 आदमियों के अलग-अलग दरजे  
अध्याय २४  आदमियों के अलग-अलग दरजे  
Lesson 24  Different Classes of People

बुधवार, 18 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 23 | भाषा, लिखावट, और गिनती | Language, Writing, and Numerals

 


इस पत्र में, नेहरू भाषा, लिखावट, और गिनती के उद्गम और विकास पर चर्चा करते हैं। वे बताते हैं कि भाषा की शुरुआत शायद जानवरों की तरह, डर या चेतावनी देने वाली आवाज़ों से हुई होगी। प्रारंभ में, इंसानों ने साधारण आवाज़ें निकालीं, और बाद में श्रमिकों द्वारा काम करते समय समूह में निकाली गई आवाज़ें (मज़दूर बोलियाँ) भाषा का हिस्सा बनीं। धीरे-धीरे, अधिक शब्द जुड़ते गए, जैसे पानी, आग, घोड़ा, भालू, और फिर संपूर्ण वाक्य बनने लगे। नेहरू यह भी बताते हैं कि प्रारंभिक सभ्यताओं में भाषा ने काफी प्रगति की थी, और गीत तथा कविताएँ लोकप्रिय थीं। उस समय लेखन कम प्रचलित था, इसलिए लोग ज़्यादातर बातें याद रखते थे। कवि और गायक वीरता के गीत गाते थे, जो उस समय की लड़ाई-झगड़े वाली जीवनशैली का प्रतीक थे। लिखावट का आरंभ भी दिलचस्प था। नेहरू बताते हैं कि लिखने की शुरुआत तस्वीरों से हुई, जहाँ लोग किसी वस्तु का चित्र बनाते थे। धीरे-धीरे चित्र सरल होते गए और फिर वर्णमाला का विकास हुआ, जिससे लिखना आसान हो गया। गिनती और अंक बहुत बड़ी खोज थी। बिना अंकों के व्यापार की कल्पना मुश्किल है। नेहरू बताते हैं कि यूरोप में पहले रोमन अंक प्रचलित थे, जो काफी कठिन थे। बाद में, "अरबी अंक" प्रचलित हुए, जो वास्तव में भारतीयों द्वारा विकसित किए गए थे। (इन्हें अब हिन्दू-अरबी अंक कहा जाता है)

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सोमवार, 16 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 22 | समुद्री सफ़र और व्यापार | Sea Voyages and Trade


 

इस पत्र में नेहरू समुद्री सफर और व्यापार के विकास के बारे में बताते हैं। वे फिनीशियन जाति का उल्लेख करते हैं, जो व्यापार के लिए लंबे समुद्री सफर करती थी। वे प्राचीन समय के खतरनाक और रोमांचक समुद्री यात्राओं का वर्णन करते हैं, जब लोग छोटे-छोटे नावों में जोखिम भरे सफर पर निकलते थे। हालाँकि, ये यात्राएँ मुख्य रूप से व्यापार और धन कमाने के लिए की जाती थीं, न कि सिर्फ रोमांच के लिए।

नेहरू व्यापार के इतिहास की शुरुआत को समझाते हैं, जब लोग वस्तुओं का सीधे आदान-प्रदान (बार्टर) करते थे, जैसे एक गाय के बदले अनाज। बाद में, सोने और चांदी का इस्तेमाल व्यापार में होने लगा, जिससे वस्तुओं का आदान-प्रदान सरल हो गया। सोने और चांदी के सिक्के आने से व्यापार और आसान हो गया, क्योंकि वजन मापने की जरूरत नहीं रह गई।
उन्होंने यह भी बताया कि आज व्यापार बहुत जटिल हो गया है। दूर-दूर से वस्तुएं एक देश से दूसरे देश तक आती हैं। वे उदाहरण देते हैं कि किस प्रकार भारत की रुई इंग्लैंड जाकर कपड़ा बनती है और फिर भारत में वापस आती है। यह प्रक्रिया समय और संसाधनों की बर्बादी है। नेहरू खादी पहनने की वकालत करते हैं, जिससे देशी उत्पादन को बढ़ावा मिले और गरीब कारीगरों की मदद हो। अंत में, नेहरू पैसे की सही भूमिका समझाते हैं। पैसा केवल वस्तुओं का आदान-प्रदान करने का माध्यम है और इसे केवल जमा करने के बजाय इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि पैसा खुद में कोई मूल्य नहीं रखता जब तक इसका उपयोग किसी ज़रूरी चीज़ के लिए न किया जाए।

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शनिवार, 14 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 21 | चीन और हिन्दुस्तान | China and India

 


इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू चीन और भारत की प्राचीन सभ्यताओं पर चर्चा करते हैं। वे बताते हैं कि जैसे मेसोपोटेमिया और मिस्र में सभ्यता का विकास हुआ, वैसे ही उसी समय चीन और भारत में भी उन्नत सभ्यताएँ विकसित हुईं। चीन में मंगोल जाति के लोग नदियों की घाटियों में बसे और उन्होंने पीतल और लोहे के बर्तन बनाए। उन्होंने नहरें और इमारतें बनाई और एक अनोखी चित्रलिपि विकसित की, जो आज भी इस्तेमाल होती है। भारत के संदर्भ में नेहरू बताते हैं कि आर्यों के आने से पहले द्रविड़ सभ्यता का विकास हुआ था, जो ऊँचे स्तर की थी। द्रविड़ लोग व्यापार में माहिर थे और मेसोपोटेमिया और मिस्र में चावल, मसाले, और साखू की लकड़ी भेजते थे। इससे पता चलता है कि भारत का दूसरे देशों के साथ प्राचीन काल में भी गहरा व्यापारिक संबंध था। नेहरू बताते हैं कि चीन और भारत में उस समय छोटी-छोटी रियासतें थीं, जिनमें से कई पंचायती राज के तहत चलती थीं, जबकि कुछ में राजा का शासन था। चीन में बाद में ये छोटी रियासतें एक बड़े साम्राज्य में बदल गईं, जिसके समय में चीन की महान दीवार का निर्माण हुआ था। नेहरू दीवार की विशालता का वर्णन करते हुए बताते हैं कि यह 1400 मील लंबी और 20 से 30 फीट ऊँची थी, जो अब भी अस्तित्व में है। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 21 चीन और हिन्दुस्तान सारांश अध्याय २१ चीन और हिन्दुस्तान Lesson 21 China and India

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 20 | मिश्र और क्रीट | Egypt and Crete

 


इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू प्राचीन मिस्र और क्रीट की सभ्यताओं के बारे में बताते हैं, जो उनकी अद्वितीय वास्तुकला, संस्कृति, और धार्मिक विश्वासों से जुड़ी हैं। नेहरू मिस्र की विशाल इमारतों जैसे कि पिरामिड और स्फिंक्स का वर्णन करते हैं। पिरामिड मिस्र के पुराने फराओ (राजाओं) के मकबरे थे, जिनमें उनकी ममी (संरक्षित शव) और उनके साथ सोने-चांदी के गहने और वस्त्र रखे जाते थे ताकि उन्हें मृत्यु के बाद आवश्यकता हो। उन्होंने तूतनखामन नामक एक फराओ की ममी की खोज का भी उल्लेख किया। इसके अलावा, नेहरू मिस्र के प्राचीन नहरों और झीलों की बात करते हैं, जो खेती के लिए बनाई गई थीं, यह दिखाता है कि उस समय मिस्र के लोग कितने उन्नत और कुशल थे। इसके बाद, नेहरू क्रीट द्वीप के बारे में बताते हैं, जहां प्राचीन समय में एक उन्नत सभ्यता थी। वे नोसोस के महल का उल्लेख करते हैं, जिसमें स्नानघर और पानी की पाइपलाइन जैसी आधुनिक सुविधाएं थीं। उन्होंने क्रीट से जुड़े प्रसिद्ध मिथकों का जिक्र भी किया, जैसे राजा मीनास की कहानी, जिसके छूने से सब कुछ सोना बन जाता था, और मिनोटॉर नामक राक्षस की कथा, जिसके लिए लड़के और लड़कियों की बलि दी जाती थी। नेहरू यह समझाने का प्रयास करते हैं कि प्राचीन धार्मिक विचार और बलि अनजाने और भय के कारण होते थे, और यह भी बताते हैं कि अब इंसानों की बलि लगभग समाप्त हो चुका है, हालांकि जानवरों की बलि अभी भी कहीं-कहीं दी जाती है। वे बलि की परंपरा को पूजा करने का अजीब तरीका कहते हैं!


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रविवार, 8 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 19 | पुरानी दुनिया के बड़े-बड़े शहर | The Great Cities Of The Ancient World


 इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू ने प्राचीन दुनिया के बड़े शहरों के बारे में बताया है। उन्होंने समझाया कि प्राचीन सभ्यताएँ मुख्यतः नदियों के किनारे और उपजाऊ घाटियों में बसी थीं, जहाँ पानी और भोजन की प्रचुरता थी। नेहरू ने बाबुल, नेनुवा, और असुर जैसे प्राचीन शहरों का उल्लेख किया, जो अब मिट्टी और बालू के नीचे दब चुके हैं और सिर्फ खुदाई के दौरान उनके खंडहर मिलते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि समय के साथ इन पुराने शहरों के ऊपर नए शहर बस गए, लेकिन धीरे-धीरे वे भी वीरान हो गए और मिट्टी और धूल के नीचे दब गए। उन्होंने दमिश्क का उदाहरण दिया, जो आज भी एक प्राचीन और जीवित शहर है, और संभवतः दुनिया का सबसे पुराना शहर माना जाता है।

नेहरू ने भारतीय प्राचीन शहरों का भी उल्लेख किया, जैसे इंद्रप्रस्थ, जो दिल्ली के पास था और अब उसका कोई निशान नहीं है, और बनारस (काशी), जो दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। उन्होंने इलाहाबाद, कानपुर, पटना और चीन के पुराने शहरों का भी जिक्र किया, जो नदियों के किनारे स्थित हैं, लेकिन ये इतने पुराने नहीं हैं। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 19 पुरानी दुनिया के बड़े-बड़े शहर अध्याय १९ पुरानी दुनिया के बड़े-बड़े शहर Lesson 19 The Great Cities Of The Ancient World

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 18 | शुरू का रहन-सहन | The Early Civilizations

 


इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू ने प्राचीन सभ्यताओं और उस समय के लोगों के जीवन पर प्रकाश डाला है। वे बताते हैं कि हालाँकि हमें इन सभ्यताओं के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन पत्थरों से बनी पुरानी इमारतों, मंदिरों और महलों के खंडहरों से हमें उस समय के लोगों के रहन-सहन और उनकी गतिविधियों के बारे में कुछ जानकारी मिलती है। नेहरू बताते हैं कि यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि सबसे पहले इंसानों ने कहाँ बसावट की और सभ्यता का विकास किया। कुछ लोग मानते हैं कि एटलांटिक महासागर में एटलांटिस नामक एक उच्च सभ्यता वाला देश था, जो महासागर में समा गया, लेकिन इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। इसके अलावा, उन्होंने अमेरिका में प्राचीन सभ्यताओं की संभावना का भी उल्लेख किया, जो कोलंबस के अमेरिका की खोज से पहले वहाँ मौजूद थीं। नेहरू बताते हैं कि यूरोप और एशिया, जिसे युरेशिया कहा जाता है, में प्राचीन सभ्यताएँ मेसोपोटामिया, मिस्र, क्रीट, भारत और चीन में विकसित हुईं। वे बताते हैं कि पुराने जमाने के लोग ऐसे स्थानों को बसावट के लिए चुनते थे, जहाँ पानी की प्रचुरता होती थी, जिससे खेती के लिए आवश्यक पानी उपलब्ध हो सके। इसलिए मेसोपोटामिया, मिस्र, और भारत की प्राचीन सभ्यताएँ नदियों के किनारे बसीं, जो उनके लिए भोजन और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करती थीं। इन नदियों को पवित्र और पूजनीय माना गया, जैसे मिस्र में नील नदी को "पिता नील" और भारत में गंगा नदी को "गंगा माई" कहा गया। नेहरू इस बात पर जोर देते हैं कि इन नदियों की पूजा इसलिए की जाती थी क्योंकि ये जीवन के लिए आवश्यक जल और उपजाऊ मिट्टी प्रदान करती थीं, लेकिन लोगों ने समय के साथ इस पूजा के वास्तविक कारण को भुला दिया और केवल परंपरा का पालन करते रहे। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 18 शुरू का रहन-सहन अध्याय १८ शुरू का रहन-सहन Lesson 18 The Early Civilizations

बुधवार, 4 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 17 | सरग़ना राजा हो गया | The Patriarch Becomes a King

 




इस पत्र में, नेहरू बताते हैं कि कैसे सरगना (पुराने समय के मुखिया) राजा बने। वह समझाते हैं कि सरगना अपने कबीले या जाति का नेता और पिता होता था। जब सरगना की गद्दी वंशानुगत हो गई, तो वह राजा में परिवर्तित हो गया। राजा ने यह मान लिया कि पूरे देश की हर चीज़ उसकी है, और उसने खुद को पूरा देश समझ लिया। एक फ्रांसीसी राजा ने कहा था, "मैं ही राज्य हूँ," जो इस बात का प्रतीक है कि राजा खुद को जनता का सेवक समझने की बजाय, मालिक समझने लगे।

राजा यह भूल गए कि लोग उन्हें केवल इसलिए चुनते थे क्योंकि वे सबसे समझदार और अनुभवी व्यक्ति माने जाते थे, ताकि वे देश का बेहतर प्रबंधन कर सकें। लेकिन उन्होंने खुद को भगवान का चुना हुआ मानकर यह समझ लिया कि उनके शासन का अधिकार ईश्वर से मिला है, जिसे उन्होंने "राजाओं का दिव्य अधिकार" कहा।

इतिहास में, नेहरू ने समझाया कि कैसे इंग्लैंड, फ्रांस और रूस जैसी जगहों पर लोगों ने अपने राजाओं को उनकी तानाशाही के कारण उखाड़ फेंका। उन्होंने इंग्लैंड के राजा चार्ल्स प्रथम को हटाने और फ्रांस और रूस में बड़ी क्रांतियों का जिक्र किया, जहां लोगों ने अपने राजाओं को निष्कासित कर दिया।

नेहरू ने बताया कि अब ज्यादातर देशों में राजा नहीं हैं और वे गणराज्य बन गए हैं, जहां लोग अपने नेताओं को चुनते हैं। हालांकि, भारत में अभी भी राजा, महाराजा और नवाब हैं, जो जनता से वसूले गए टैक्स का दुरुपयोग करके शाही जीवन जीते हैं, जबकि उनकी प्रजा गरीबी में जीवन व्यतीत करती है और उनके बच्चों के लिए स्कूल तक नहीं हैं।

Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 17 सरग़ना राजा हो गया अध्याय १७ सरग़ना राजा हो गया Lesson 17 The Patriarch Becomes a King

सोमवार, 2 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 16 | सरग़ना का इख़्तियार कैसे बढ़ा | The Patriarch - How He Developed

 


इस पत्र में, जवाहरलाल नेहरू यह समझाते हैं कि प्राचीन मानव जातियों में संपत्ति और नेतृत्व का विकास कैसे हुआ। प्रारंभ में, सभी चीजें पूरी जाति की होती थीं, और किसी का व्यक्तिगत स्वामित्व नहीं होता था, यहां तक कि सरगना का भी नहीं। सरगना का काम केवल जाति की संपत्ति की देखभाल करना था। लेकिन जैसे-जैसे सरगना की ताकत बढ़ी, उसने जाति की संपत्ति को अपना मानना शुरू कर दिया। इस तरह, व्यक्तिगत स्वामित्व की अवधारणा का जन्म हुआ।

समय के साथ, सरगना का पद मौरूसी हो गया, यानी उसकी जगह उसके परिवार का ही कोई सदस्य, जैसे उसका बेटा या भाई, लेने लगा। इस बदलाव के साथ, संपत्ति भी सरगना के परिवार की मानी जाने लगी। इस प्रकार, समाज में अमीर और गरीब का अंतर पैदा हुआ, क्योंकि सरगना ने जाति की संपत्ति पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया। नेहरू अगले पत्र में इस विषय पर और अधिक लिखने की बात कहते हैं। Tags Jawaharlal Nehru Indira Gandhi letters Pita ke Patra Putri ke Naam by Jawaharlal Nehru Letters from a Father to his Daughter Nehru ke patra Indira ko Nehru’s Letters to Indira पाठ 16 सरग़ना का इख़्तियार कैसे बढ़ा अध्याय १६ सरग़ना का इख़्तियार कैसे बढ़ा Lesson 16 The Patriarch - How He Developed

रविवार, 1 सितंबर 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 15 | खानदान का सरगना केसे बना | The Patriarch - How He Began

 


पत्र का सारांश - Summary of the letter

इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू अपनी बेटी इंदिरा को समझाते हैं कि समाज में सरगना (पितृसत्ता) की शुरुआत कैसे हुई। पहले के समय में, जब समाज सरल था, सब लोग बराबर थे और मिल-जुलकर काम करते थे। खेती और नई गतिविधियों के आने के बाद, किसी को काम बाँटने और संगठन करने की ज़रूरत पड़ी, और यह ज़िम्मेदारी सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को दी गई, जिसे सरगना या पितामह कहा गया।

शुरुआत में, सरगना भी बाकी लोगों की तरह काम करता था, लेकिन धीरे-धीरे उसने संगठन का काम करने के लिए शारीरिक श्रम करना छोड़ दिया और दूसरों से अलग हो गया। सरगना का काम सिर्फ संगठन करना और लोगों को काम का आदेश देना रह गया। समय के साथ, जब लड़ाइयाँ होने लगीं, सरगना का महत्व और भी बढ़ गया क्योंकि बिना नेता के लड़ाई संभव नहीं थी।

सरगना ने अपनी मदद के लिए और लोगों को भी संगठन करने के काम में लगाया, जिससे समाज दो हिस्सों में बंट गया—एक वो जो संगठन का काम करते थे और दूसरे वे जो सामान्य श्रम करते थे। इस तरह समाज में असमानता की शुरुआत हुई, और सरगना का दबदबा बढ़ता गया। अगले पत्र में नेहरू और विस्तार से इस प्रक्रिया को समझाएंगे।


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पाठ 15   ख़ानदान का सरग़ना कैसे बना  
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गुरुवार, 29 अगस्त 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 14 | खेती से पैदा हुई तब्दीलियां | The Changes brought about by Agriculture

 


सारांश :  इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू खेती के आगमन से हुई तब्दीलियों के बारे में बताते हैं। वे समझाते हैं कि शुरुआती मानव समाजों में काम का बंटवारा बहुत कम था, सभी लोग शिकार करते थे और मुश्किल से खाने भर का इंतजाम कर पाते थे। धीरे-धीरे, मर्द और औरतों के बीच काम का बंटवारा हुआ, जहां मर्द शिकार करते थे और औरतें घर पर रहकर बच्चों और पालतू जानवरों की देखभाल करती थीं।

जब लोगों ने खेती करना सीखा, तो काम का बंटवारा और बढ़ गया। कुछ लोग खेती करने लगे, जबकि कुछ ने शिकार करना जारी रखा। इस बदलाव के साथ, लोगों ने एक जगह बसना शुरू कर दिया, क्योंकि खेती के लिए ज़मीन के पास रहना जरूरी हो गया। इस तरह गांव और कस्बों का विकास हुआ, क्योंकि खेती करने के बाद लोग एक जगह पर ही रहने लगे।

खेती से जीवन भी आसान हो गया, क्योंकि खेती से अधिक खाना मिल जाता था जिसे बाद में भी इस्तेमाल किया जा सकता था। नेहरू बताते हैं कि जब लोग केवल शिकार पर निर्भर थे, तो वे कुछ भी जमा नहीं कर सकते थे, लेकिन खेती के आने के बाद लोग फालतू अनाज जमा करने लगे। यही फालतू अनाज बाद में धन का आधार बना। आजकल के बैंक भी इसी तरह काम करते हैं, जहां लोग अपनी बचत जमा करते हैं।

नेहरू इस बात पर जोर देते हैं कि आज के समाज में भी धन का असमान बंटवारा है। कुछ लोग बिना मेहनत के भी अमीर बन जाते हैं, जबकि मेहनती लोग अक्सर गरीब रह जाते हैं। यह असमानता दुनिया में गरीबी का एक बड़ा कारण है। हालांकि, वे इंदिरा से कहते हैं कि यह समझना उनके लिए अभी मुश्किल हो सकता है, लेकिन वे आगे चलकर इसे बेहतर समझेंगी। इस पत्र का मुख्य संदेश यह है कि खेती से इंसानों को ज्यादा खाना मिला, जिसे वे जमा कर सकते थे, और इसी से अमीरी-गरीबी का भेद शुरू हुआ।


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पाठ 14  खेती से पैदा हुई तब्दीलियां

Lesson 14  The Changes brought about by Agriculture

पिता के पत्र | एपिसोड 13 | मज़हब की शुरुआत और काम का बँटवारा

 


इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू अपनी बेटी को समझाते हैं कि मजहब (धर्म) और काम के बंटवारे की शुरुआत कैसे हुई।

नेहरू बताते हैं कि पुराने ज़माने में लोग हर चीज़ से डरते थे और सोचते थे कि उनके दुर्भाग्य का कारण क्रोधी और ईर्ष्यालु देवता हैं। उन्हें ये काल्पनिक देवता प्रकृति—जंगल, पहाड़, नदी, बादल—हर जगह दिखाई देते थे। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वे भोजन और बलिदान देते थे, यहाँ तक कि कभी-कभी इंसानों और बच्चों की भी बलि चढ़ा देते थे। यही भय से उत्पन्न विचार धर्म की शुरुआत का कारण बना। नेहरू कहते हैं कि कोई भी काम जो डर के कारण किया जाए, वह गलत है, और आज भी लोग धर्म के नाम पर आपस में लड़ते हैं।

इसके बाद नेहरू बताते हैं कि शुरुआती मनुष्य को हर दिन भोजन जुटाने की चुनौती होती थी। कोई भी आलसी व्यक्ति उस समय जीवित नहीं रह सकता था। जब जनजातियों का गठन हुआ, तो लोग मिलकर काम करने लगे, जिससे भोजन जुटाना आसान हो गया। सहयोग से वे बड़े-बड़े काम कर सकते थे, जो अकेले संभव नहीं थे। एक और बड़ा बदलाव कृषि के आगमन से आया। नेहरू ने चीटियों का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे वे अपने खाने के लिए घास हटाकर एक पौधे की रक्षा करती हैं, जो खेती की शुरुआत का संकेत हो सकता है।

कृषि के साथ भोजन प्राप्त करना आसान हो गया, और लोगों की ज़िंदगी पहले से कम कठिन हो गई। इसके साथ ही काम का बंटवारा भी शुरू हुआ। पहले सभी पुरुष शिकार करते थे, लेकिन कृषि के आने के बाद अलग-अलग प्रकार के काम उत्पन्न हुए—खेतों में काम करना, शिकार, और पशुओं की देखभाल करना। कुछ लोग एक काम करने लगे, जबकि कुछ अन्य काम।

नेहरू अंत में कहते हैं कि आज भी हर व्यक्ति किसी एक खास पेशे में विशेषज्ञ होता है—कोई डॉक्टर होता है, कोई इंजीनियर, बढ़ई, या दरज़ी। हर व्यक्ति अपने काम में कुशल होता है और यही काम का बंटवारा है, जिसकी शुरुआत कृषि के दौर में पुरानी जातियों के साथ हुई थी।

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