शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

पत्र #१० | ज़बानों का आपस में रिश्ता | पिता के पत्र पुत्री के नाम

 इस पत्र में, नेहरू बताते हैं कि आर्य विभिन्न देशों में फैल गए और उनकी एक भाषा समय के साथ बदलकर कई भाषाओं में विभाजित हो गई। अलग-अलग इलाकों और स्थितियों के कारण इन भाषाओं में अंतर आ गया, लेकिन फिर भी कुछ शब्द, जैसे "पिता" और "माता," विभिन्न भाषाओं में समान रहे। यह दर्शाता है कि ये भाषाएँ कभी एक ही परिवार से निकली होंगी।

नेहरू भाषा के अध्ययन को रोचक मानते हैं, क्योंकि इससे हमें अपने पूर्वजों और हमारी साझा विरासत का पता चलता है। वे यह भी बताते हैं कि समय के साथ लोग अपने पुराने संबंधों को भूल गए और हर देश के लोग खुद को सबसे श्रेष्ठ समझने लगे। नेहरू इस प्रकार की घमंड भरी सोच की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि हर देश में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं। हमें जहाँ अच्छाई मिले उसे अपनाना चाहिए और जहाँ बुराई हो उसे दूर करना चाहिए।

नेहरू यह भी बताते हैं कि भारत की स्थिति खराब है और लोगों को दुखी होने से बचाने के लिए हमें उनके जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। भारतीयों को अपने देश के लिए काम करना चाहिए, लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि हम एक बड़े वैश्विक परिवार का हिस्सा हैं। उनका मानना है कि हमें सारी दुनिया को एक खुशहाल और शांतिपूर्ण स्थान बनाने का प्रयास करना चाहिए।

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