इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू यह समझाते हैं कि कैसे विभिन्न मानव जातियाँ (कौमें) बनीं और उनकी शारीरिक विशेषताएँ, विशेष रूप से त्वचा का रंग, कैसे समय के साथ वातावरण के कारण बदलीं। वे नए पत्थर युग के लोगों का उल्लेख करते हैं, जिनसे आज की कई मानव जातियाँ निकलीं हो सकती हैं। नेहरू बताते हैं कि आज दुनिया में गोरे, काले, पीले, भूरे सभी प्रकार के लोग हैं, लेकिन इन रंगों के आधार पर जातियों को अलग-अलग करना आसान नहीं है, क्योंकि मानव जातियाँ आपस में मिश्रित हो चुकी हैं।
नेहरू बताते हैं कि इन विभिन्नताओं के पीछे मुख्य कारण जलवायु और आसपास के माहौल के अनुसार अनुकूलन है। वे उदाहरण देते हैं कि उत्तर में ठंडे इलाकों में रहने वाले लोग गोरे होते हैं, जबकि विषुवत रेखा के पास गर्म इलाकों में रहने वाले लोग काले होते हैं। वे इस बात का ज़िक्र करते हैं कि जैसे धूप में रहने से त्वचा सांवली हो जाती है, वैसे ही जो लोग सदियों तक गर्म इलाकों में रहते हैं, उनकी त्वचा काली हो जाती है।
नेहरू इस बात पर ज़ोर देते हैं कि त्वचा का रंग सिर्फ़ जलवायु के कारण होता है और इसका किसी व्यक्ति की अच्छाई या काबिलियत से कोई लेना-देना नहीं है। कश्मीरियों का उदाहरण देते हुए, वे बताते हैं कि ठंडे इलाकों में रहने वाले लोग गोरे होते हैं, लेकिन अगर वे गर्म इलाकों में कई पीढ़ियों तक रहें, तो उनका रंग भी गहरा हो जाता है। अंत में, नेहरू यह बताते हैं कि भारत में उत्तर के लोग गोरे होते हैं और दक्षिण की ओर जाते-जाते लोग काले होते जाते हैं, जो मुख्य रूप से जलवायु का असर है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि भारत में कई अलग-अलग जातियाँ आईं और समय के साथ वे आपस में मिल गईं, जिससे यह बताना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति किस मूल जाति से संबंधित है।
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