मंगलवार, 27 अगस्त 2024

पिता के पत्र | एपिसोड 10 | ज़बानों का आपस में रिश्ता | The Relationships of Languages

 

इसी पत्र से:  "तुमने यह भी देखा कि बहुत से आदमी जो अब दूर-दूर मुल्कों में एक दूसरे से अलग रहते हैं किसी ज़माने में एक ही क़ौम के थे। तब से हम में बहुत फर्क हो गया है और हम अपने पुराने रिश्ते भूल गए हैं। हर एक मुल्क के आदमी खयाल करते हैं कि हमीं सबसे अच्छे और अक़लमन्द हैं और दूसरी जातें हमसे घटिया हैं।अँगरेज़ ये ख्याल करता है कि वह और उसका मुल्क सबसे अच्छा है; फ्रांसीसी को अपने मुल्क और सभी फ्रांसीसी चीजों पर घमंड है; जर्मन और इटालियन अपने मुल्कों को सबसे ऊँचा समभते हैं।और बहुत से हिन्दुस्तानियों का खयाल है कि हिन्दुस्तान बहुत सी बातों में सारी दुनिया से बढ़ा हुआ है। 


"यह सब डींग है। हर एक आदमी अपने को और अपने मुल्क को अच्छा समझता है लेकिन दरअसल कोई ऐसा आदमी नहीं है जिसमें कुछ ऐब और कुछ हुनर न हों। इसी तरह कोई ऐसा मुल्क नहीं है जिसमें कुछ बातें अच्छी और कुछ बुरी न हों। हमें जहाँ कहीं अच्छी बात मिले उसे ले लेना चाहिए ओर बुराई जहाँ कहीं हो उसे दूर कर देना चाहिए| हमको तो अपने मुल्क हिन्दुस्तान की ही सब से ज़्यादा फिक्र है। हमारे दुर्भाग्य से इसका जमाना आजकल बहुत खराब है और बहुत से आदमी ग़रीब और दुखी हैं। उन्हें अपनी ज़िन्दगी में कोई खुशी नहीं है। हमें इसका पता लगाना है कि हम उन्हें कैसे ज़्यादा सुखी बना सकते हैं। 


"हमें यह देखना है कि हमारे रस्म रिवाज में क्या खूबियाँ है और उनको बचाने की कोशिश करना हे, जो बुराइयां हैं उन्हें दूर करना है। हम हिन्दुस्तानी हैं और हमें हिन्दुस्तान में रहना और उसी की भलाई के लिए काम करना है। लेकिन हमें यह न भूलना चाहिए कि दुनिया के और हिस्सों के रहने वाले हमारे रिश्तेदार ओर कुटुम्बी हैं। क्या ही अच्छी बात होती अगर दुनिया के सभी आदमी खुश और सुखी होते। हमें कोशिश करनी चाहिए कि सारी दुनिया ऐसी हो जाय जहाँ लोग चैन से रह सकें. "

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