🌫️ निराशा, सम्मान और वैचारिक भिन्नता।
🎧 नेहरू की आत्मकथा के अध्याय 61 और 62
📘 61: विरक्ति (Desolation)
नागरिक अवज्ञा आंदोलन के अंत और गांधीजी की विचारधारा से दूर होते नेहरू अपनी निराशा व्यक्त करते हैं।
वो गांधीजी के ब्रह्मचर्य, त्याग और आधुनिकता विरोध को अव्यावहारिक मानते हैं. फिर भी उनकी नैतिक शक्ति को स्वीकार करते हैं।
नेहरू स्पष्ट करते हैं कि तर्क, सुधार और मानवतावाद ही उनकी दिशा है।
📘 62: विरोधाभास (Paradoxes)
इस अध्याय में नेहरू गांधीजी के अंतर्विरोधों की चर्चा करते हैं; व्यक्तिगत विनम्रता और वैचारिक कठोरता।
वे गांधीजी की जमींदारी व्यवस्था में हस्तक्षेप न करने और समाजवाद से दूरी को लेकर आलोचनात्मक हैं।
नेहरू का आग्रह है; जनतांत्रिक बदलाव और आर्थिक न्याय की ओर।
🎧 सुनिए, जब नेहरू गांधी को श्रद्धा से देखते हैं, पर बिना आँखें मूँदे।
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