बुधवार, 28 दिसंबर 2011

साक्षात्कार (Interview)


इस ब्लॉग में प्रकाशित करने हेतु,
कुछ रोचक, मनोरंजक बात की तलाश में,
अपनी अद्भुत शक्ति का प्रयोग कर,
मैं मिलने गयी आकाश में विचरती आत्माओं से.

सोचा कि महान स्त्रियों से करूंगी मुलाकात,
और पहुंचाऊंगी आप तक, बिना लाग-लपेट,
झाँसी की रानी, इंदिरा गाँधी, महादेवी वर्मा,
अमृता प्रीतम या सरोजिनी नायडू के विचार.

“आप कौन हैं?”  मैंने पहली आत्मा से पुछा.
“मैं हूँ नंबर, दो सौ सोलह,” खनकता हुआ जवाब आया.
“मैं हूँ नंबर, पांच सौ पचपन,” दूसरी आत्मा ने कहा.
“मैं हूँ नंबर, तीन करोड़ सात सौ पाँच,” तीसरी ने कहा.

मछलियों की तरह चारों ओर मंडराते उस झुण्ड से
नंबरों की ही आवाजें आती रही.
“शांत हो जाईये, सिर्फ एक जन एक समय पर बोलिए,
कृपया पहले अपना नाम तो बताइए.”

“ये यमदूत के दिए नंबर ही हमारे नाम हैं.
हमारी माँ ने तो लड़के की चाह में बिना नाम दिए, 
हमें कोख ही में मार दिया था,” एक खोई हुई आवाज आई.
उनकी  दबी हुई आहें और सिसकियाँ अब भी मुझे देती हैं सुनाई.

 (चित्र सौजन्य:  
www.dreamstime.com/)

33 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर, सार्थक मनोक्ति, आप सभी को नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं.

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  2. अवाक् कर देने वाली अद्वितीय पंक्तियाँ ! पर क्या ये सिसकियाँ उन हत्यारों तक पहुँच सकेंगीं ?

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  3. @Kewal Bhaisahib: Thanks!!

    @Arkjesh: Thanks :-)

    @Umashankar: Unko sunane ke liye hee kavita likhi hai :-|

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  4. Sad reflection of gender preference! Like always a good write!Happy New Year..

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  5. rula diya....marmik aur hirday bidarak...mail akar is samasya se larta rahta hun.....

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  6. Marmik evam hridayvidarak vernan...Har baar ki tereh is baar bhi kavita k naye mod ne stabdh kar diya!!!sirf ek shikayat hai, ki in masoom aatmaaon ko yamraaj k paas kyon pahunchaya, aur sirf stri(maa) ko doshi kyon tharaya...Un nanhi aatmaon ne maa ko dosh diya..kahan gaya woh baap, jo maa ko jabardasti clinic le gaya...kahan gaya woh samaaj, jisne aisa niyam banaya??? Aane bhi antim muzrim ek maa, ek naari ko bana daala???

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  7. Please don't mind my above comment...It is from a critical view because i believe one more paragraph could have been added to point the finger....This is a very profound piece of literature :)

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  8. @Rahul: Happy new year to you too!

    @Arun: Thanks! I remember your writings on this topic.

    @Sangeeta: Your previous comment was a perfect rejoinder! It's true that the society and its rotten traditions are responsible for all the cruelties.

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  9. आपने कविता को संवाद की शैली में अभिव्यक्त किया है . संवाद में प्रयोग किये गए शब्द जितने सरल लगते हैं उतने ही इनके अर्थ भी गहरे हैं ....जीवन की वास्तविकताओं को शब्द देने का आपका यह प्रयास सार्थक है ......! सार्थक और सुंदर लेखन के लिए आपको शुभकामनाएं .

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  10. wow;;;
    it's a wonderful poem;;
    and you have brilliant imagination;;
    I have not came across before, such a poem which have such imagination and a beautiful message;;
    awesome..

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  11. बहुत ही मार्मिक!
    सच है, इस विकट समस्या के विरुद्ध समाज में आवाज़ तो बुलंद रखनी ही होगी!

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  12. गंभीर विषय पर बहुत मार्मिक रचना.... शुक्रिया इस रचना के लिए..

    इसी सन्दर्भ में समय हो तो मेरी इन नज्मों पे भी नज़र डालें....

    मेरी बच्ची..... बिटिया ना बन के पैदा हो
    http://talashe-khamoshi.blogspot.in/2011/04/blog-post_1464.html
    माँ मेरी, दे जनम मुझे
    http://talashe-khamoshi.blogspot.in/2011/05/blog-post_03.html

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  13. सार्थक एवं सुंदर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।

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  14. Brilliance..Now I realise how precious the name given to us by parents is, and thanks to them for being human enough for not letting us be a number..Giribala, loved it

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  15. बहुत सी कविताओं, आलेखों में इस समस्या पर पढ़ा मगर आपका अंदाज़ निराला है ! एक आह निकल कर रह गई !

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