राजकुमारी सीता (यह चित्र सीताचरितमानस के लिए बनाया गया है. मूल चित्र यहाँ है ) |
दीपों के इस उत्सव का सर्वप्रथम वर्णन हिन्दू महाकाव्य रामायण में मिलता है. इस महाकाव्य के नवीनतम संस्करण* श्री सीताचरितमानस के अनुसार, राजकुमारी सीता इस दिन राक्षसी मंदोदरी का वध करके मिथिला वापस लौटी थी. मिथिलावासियों ने पूरे नगर को दीपों से सुसज्जित करके अत्यंत हर्षोल्लास के साथ उनका स्वागत किया था.
राजकुमारी सीता विदेह की महारानी सुनयना तथा उनके तीन पतियों में से एक की सुपुत्री थी. वह एक साधारण कन्या नहीं, परन्तु महादेवी महालक्ष्मी का अवतार थी. उन्होंने इस धरती पर अधर्म का विनाश तथा धर्म की स्थापना हेतु जन्म लिया था. आपके लिए प्रस्तुत है श्री सीताचरितमानस का सारांश.
लम्बे समय तक निःसंतान रहने के उपरांत, महारानी सुनयना पुत्री पाने के लिए पुत्रीकामेष्टि यज्ञ करती हैं. फलस्वरूप, उनके गर्भ से चार कन्याओं का जन्म होता है. सबसे बड़ी कन्या का नाम सीता रखा जाता है. सीता गुरुकुल में अस्त्र-शस्त्र से लेकर सभी नीति शास्त्रों में पारंगति प्राप्त करती हैं. जब वे विवाह योग्य होती हैं तो अयोध्या के राजकुमार राम के स्वयंवधु में भाग लेने पहुँचती हैं. वहां पर वे न केवल पार्वती के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने में सफलता प्राप्त करती हैं, बल्कि उस भारी धनुष को तोड़ भी देती हैं. परिणामस्वरूप राम उन्हें वधुमाला पहना देते हैं. सीता उन्हें ब्याह कर मिथिला ले आती हैं.
सबसे बड़ी पुत्री होने के कारण, राजकुमारी सीता विदेह की राजगद्दी की उत्तराधिकारी हैं, परन्तु उनके एक द्वेषी सौतेले पिता, जो कि महारानी के मुंह लगे हैं, महारानी से एक पुराने वचन के एवज में राजकुमारी सीता के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांग लेते हैं.
वचनबद्ध महारानी सुनयना अपनी प्रिय पुत्री से दूर नहीं होना चाहती, परन्तु सीता पुत्री धर्मं का पालन करते हुए राजसी ठाठ-बाठ का त्याग कर, वन की ओर उन्मुख हो जाती हैं. उनके आज्ञाकारी एवं समर्पित पति राम यह कहते हुए कि "हे देवी, वह वन जहां आप होंगी मेरे लिए मिथिला समान होगा, और मिथिला आप बिन नरक समान होगी," उनके साथ चल देते हैं. सीता देवी की बहिन लक्षिता भी उनका साथ नहीं छोड़ती.
उधर राजमहल में महारानी सुनयना पुत्री विरह शोक में अपनी देह त्याग देती हैं. और भारती, जिसके पिता ने सीता को वन में भिजवाया था, राजपाट स्वीकार करने से इनकार कर देती हैं. वे सीता की अनुपस्थिति में उनके कंगनों को राजगद्दी पर रख कर शासन करती हैं.
सीता, लक्षिता, और राम वन में कुटी बना कर रहते हैं तथा कंद मूल खा कर अपना निर्वाह करते हैं. एक दिन एक राक्षस आकर दोनों बहिनों को लाइन मारता है. लक्षिता क्रोधित होकर उस राक्षस के नाक एवं कान काट देती हैं. वह राक्षस रोता हुआ अपनी बहिन मंदोदरी से शिकायत करने जाता है. दसशीशधारी मंदोदरी लंका नामक द्वीप की शक्तिशाली एवं अहंकारी शासिका हैं. वह अपने भ्राता के साथ हुए दुर्व्यवहार के प्रतिशोध के लिए, एक कुटिल चाल चल कर, राम का अपहरण कर लेती हैं. फिर राम पर विवाह करने का दबाव डालती हैं. परन्तु पत्नीव्रता राम मंदोदरी को आँख तक उठा कर नहीं देखते.
सीता एवं लक्षिता राम की तलाश में वन वन भटकती हैं. उनकी एक मनुष्य समान वानर प्रजाति के सदस्यों से घनिष्ठ मित्रता हो जाती है. उनमें से हनुवती नाम की एक वानरी तो सीता की आजीवन सेविका बन जाती है. सीता एवं लक्षिता वानरों की सेना की सहायता से लंका पर आक्रमण कर देते हैं. भीषण युद्ध के उपरांत सीता मंदोदरी का हनन करके राम को मुक्त कराने में सफल होती हैं.
चूंकि राम राक्षसी के यहाँ रहकर आये हैं, सीता उन्हें अग्निपरीक्षा द्वारा अपनी पवित्रता प्रमाणित करने को कहती हैं. राम बिना चूं चां किये अग्नि में कूद पड़ते हैं और बिना बाल बांका हुए बाहर भी निकल आते हैं.
राम की अग्निपरीक्षा (यह सीताचरितमानस के लिए बनाया गया चित्र है. मूल चित्र यहाँ है ) |
सीता का राज्याभिषेक होता है. महारानी सीता अब राजपाट संभालती हैं तथा अपने सुशील सुघड़ पति के साथ सुखपूर्वक रहती हैं. परन्तु आने वाले दिनों में मिथिला की प्रजा, अग्निपरीक्षा के बावजूद राम के चरित्र को लेकर कानाफूसी करने लगती है. राजधर्म के तहत, अपनी प्रजा को संतुष्ठ रखने के लिए, सीता राम को मिथिला से निष्कासित कर देती हैं. राम वन में वाल्मिका नाम की महिला ऋषि के आश्रम में रहते हैं. कुछ महीनों पश्चात् सीता अपने नवजात जुड़वाँ शिशुओं को भी राम के पास भिजवा देती हैं और अपना पूरा ध्यान राजकाज में लगाती हैं.
अनेक वर्ष उपरांत, वे जुड़वाँ बालक महारानी सीता के दरबार में उपस्थित होते हैं, और उन्हें राम के निष्कासन की कथा गाकर सुनाते हैं. उन्हें सुनकर सीता का ह्रदय आत्मग्लानी से भर जाता है. वाल्मिका तब राम को भी सीता के सामने लेकर आती हैं. राम धरती माँ का आह्वान करते हैं. धरती फट जाती है और राम उसमें समा जाते हैं. अब सीता को लगता है कि उनका अधर्म को नाश करने का कार्य पूर्ण हो गया है अतः वे भी देवलोक को प्रस्थान कर जाती हैं.
यह महाकाव्य सभी को आदर्श आचरण की शिक्षा देता है, विशेषकर पुरुषों को, कि किस प्रकार उन्हें विवाह से पहले अपनी माँ की आज्ञा का पालन करना चाहिए तथा विवाहोपरांत अपनी पत्नी एवं सासू माँ की सेवा-सुश्रुषा करनी चाहिए.
श्री सीताचरितमानस को मात्र अपने मंदिर में रखने से घर पवित्र हो जाता है. घर के पुरुषों द्वारा इसका सच्चे दिल से श्रद्धापूर्वक नियमित पठन-पाठन करने से, घर में सुख-शांति रहती है तथा घर की स्त्रियों को सफलता एवं समृद्धि प्राप्त होती है.
बोलो श्री सीता देवी की जय! श्री हनुवती की जय!
आप सबको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत खूब गिरी , रामायण को इस परिप्रेक्ष्य में दिखाने के लिए, समस्त धर्मावलम्बी इसे पढ़े और अन्यथा न लेते हुए इसके मूल सन्देश को अंगीकार करें, ऐसी मेरी कामना है, जय सीता, जय गिरी एवं जय समस्त नारी जाति,
जवाब देंहटाएं"यत्र नार्यस्ते पूज्यन्ते ; रमन्ते तत्र देवता "
Thanks Brijesh :-)
जवाब देंहटाएंवाह!!रामायण की जगह सितायण !
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
RajputsParinay
bahut achhaa 'SEETAAYANA',kuchh de----r me najar parhi----ha- ha --ha
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