(मेरे पतिदेव की आपबीती)
फ़रवरी का मौसम, मस्त महीना,
जुहू चौपाटी पे चला जा रहा था,
एक पुरानी सी बोतल पांव से टकराई,
उठा के देखा, ढक्कन जो खोला,
एक दिलकश सी जीनी निकल के आई,
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
मैं घबराया, कुछ शरमाया,
जीनी से पूछा मुझे क्या क्या मिलेगा,
जीनी बोली, "हुक्म करो मेरे आका,
मंहगाई और मंदी का है ज़माना,
सिर्फ एक ही तमन्ना पूरी कर सकूंगी."
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
बोला, "मेरी तो है बस एक अभिलाषा,
भारत पाकिस्तान का सुलझा के झगडा,
मेरे देश से मिटा दो मजहबी बैर का रगड़ा.
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
जीनी बोली, "यह तो है सालों साल का लफड़ा,
मौलवी, पंडित, नेता, हथियार विक्रेता,
इन दिग्गजों का है चलता इससे दारू-पानी का खर्चा,
कुछ और मांगो, ये मेरे बस की बात नहीं."
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
फिर मैंने दूसरी तमन्ना बताई,
एक पर्सनल सी आकांक्षा जताई,
"मेरी बीवी को नौकरी दिला दो,
उसे कुछ जिम्मेदार बना दो."
जीनी के माथे पे आया पसीना,
बोली, "कश्मीर का नक्शा ज़रा फिर से दिखाना."
बोली, "कश्मीर का नक्शा ज़रा फिर से दिखाना."
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई,
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
Inspired by a genie joke
Read the latest post on the English blog: The Grist Mill
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
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जीनी के माथे पे आया पसीना,
जवाब देंहटाएंबोली, "कश्मीर का नक्शा ज़रा फिर से दिखाना."
बहुत खूब ... यहाँ तक आने से पहले आपने सार्थक ख़बर ली है हालात की
धन्यवाद् किशोर! मुझे ख़ुशी है की आप में मेरी कवितायेँ पढने का भी धैर्य है.
जवाब देंहटाएंजीनी कन्फूज है कि कौन सी समस्या कम ह्यूज है :-)
जवाब देंहटाएंआप तो कविता भी बढिया गढ लेती हैं।
बहुत खूबी से वर्णन किया है,
जवाब देंहटाएंक्या गहराई है समस्याओं की,
एक से सारी जनता पीड़ित
दूजी व्यथा है दर्दे दिल की !!!
Giri
जवाब देंहटाएंNice one.
@अर्कजेश: जीनी भी आसान रास्ता ढूँढ रही है :-)
जवाब देंहटाएं@संगीता: आप भी अच्छी शायरी लिख लेती हैं Thanks!
@Ashwani: Thanks! Keep visiting the blog...with family :-)
गिरिबाला जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत दिलचस्प है आपके श्रीमान जी की आपबीती …
सर को मुबारकबाद ! :)
वैसे कविता उन्होंने लिख कर आपको दी … या उनकी आपबीती का राज़ जानने का लाभ उठाते हुए आपने लिख ली … ज़ाहिर है मूल विचार तो उन्होंने ही दिए …
आपकी गृहस्थी में सुख सौहार्द हंसी ख़ुशी का माहौल हमेशा बना रहे आमीन !
♥ बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मुझे लगता है की इसमें जीनी ने फिर से नक्शा नहीं मांगी होगी। यह बात झूठ है अजी पत्नी की नौकरी भला कौन भला पति मांगेगा..... मांगेगा तो जीनी तुरंत दे देगी... बहुत खूबसूरत। खास कर मंहगाई बाली बात। सुन्दर कविता। भावों को खूबसूरत शब्द दे दिया है। आभार।
जवाब देंहटाएं@राजेंद्र जी: शुभ कामनाओं के लिए धन्यवाद. अब कविता किसने लिखी है इस बात को तो राज ही रहने दीजिये !!
जवाब देंहटाएं@अरुण: पता नहीं इस कहानी में कितना झूठ है कितना सच. मैं लोगो की बातों पे जरा जल्दी ही विश्वास कर लेती हूँ.
हंसाने में कामयाब रहे हैं आप ! शुभकामनायें आपकी लेखनी को !
जवाब देंहटाएं@सतीश जी, ब्लॉग पर आने का बहुत बहुत धन्यवाद :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय गिरिबाला जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत खूबसूरत
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
Thanks Sanjay!
जवाब देंहटाएंati sunder
जवाब देंहटाएंThanks Reena :-)
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