रविवार, 20 फ़रवरी 2011

या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गयी!

(मेरे पतिदेव की आपबीती)

फ़रवरी का मौसम, मस्त महीना,
जुहू चौपाटी पे चला जा रहा था,
एक पुरानी सी बोतल पांव से टकराई,
उठा के देखा, ढक्कन जो खोला, 
एक दिलकश सी जीनी निकल के आई,
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.


मैं घबराया, कुछ शरमाया,
जीनी से पूछा मुझे क्या क्या मिलेगा,
जीनी बोली, "हुक्म करो मेरे आका,
मंहगाई और मंदी का है ज़माना,
सिर्फ एक ही तमन्ना पूरी कर सकूंगी."
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.



शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

धर्मेन्द्र जी के दिल से निकली चंद कवितायेँ

फिल्म 'यमला पगला दीवाना' में धर्मेन्द्र जी ने एक गाना लिखा है. इस फिल्म के प्रचार के दौरान, हमारे रोमांटिक-एक्शन हीरो ने बताया कि वे कवितायेँ भी लिखते हैं और निकट भविष्य में अपना कविता संकलन प्रकाशित करेंगे. जब तक असली कवितायेँ छप कर ना आ जाएँ, तब तक आप इन नकली कविताओं से काम चलाइए:



#1
मैं जट यमला पगला दीवाना,
हो रब्बा, इतनी सी बात ना जाना,
कि राजनीति मेरे बस की बात नहीं है.
चुनाव जीतना तो बाएं हाथ का खेल था,
हो रब्बा, संसद में बैठ ना पाया,
कि अभिनेता से नेता बनना आसान नहीं है.




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