(मेरे पतिदेव की आपबीती)
फ़रवरी का मौसम, मस्त महीना,
जुहू चौपाटी पे चला जा रहा था,
एक पुरानी सी बोतल पांव से टकराई,
उठा के देखा, ढक्कन जो खोला,
एक दिलकश सी जीनी निकल के आई,
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.
मैं घबराया, कुछ शरमाया,
जीनी से पूछा मुझे क्या क्या मिलेगा,
जीनी बोली, "हुक्म करो मेरे आका,
मंहगाई और मंदी का है ज़माना,
सिर्फ एक ही तमन्ना पूरी कर सकूंगी."
या अल्लाह, या अल्लाह, जीनी मिल गई.