गुरुवार, 9 जनवरी 2025

पत्र 31 | रामायण और महाभारत

इस पत्र में नेहरू रामायण और महाभारत की महत्ता पर चर्चा करते हैं। वे बताते हैं कि वेदों के युग के बाद काव्यों का युग आया, जिसमें दो प्रमुख महाकाव्य — रामायण और महाभारत — लिखे गए।

नेहरू लिखते हैं कि इस युग में आर्य लोग उत्तर भारत से विंध्य पर्वत तक फैल गए थे, और इस क्षेत्र को "आर्यावर्त" कहा जाता था, जो चाँद के आकार की तरह दिखता था।

रामायण की कथा राम और सीता के साथ लंका के राजा रावण की लड़ाई की है, जिसे वाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा, और तुलसीदास ने हिंदी में "रामचरितमानस" के रूप में प्रस्तुत किया। संभव है कि रामायण में दक्षिण भारत के लोगों और आर्यों की लड़ाई का चित्रण हो।

महाभारत, जो रामायण के काफी बाद लिखा गया, एक विशाल ग्रंथ है और इसमें आर्यों के आपसी संघर्ष की कथा है। लेकिन इसके अतिरिक्त, इसमें गहरी विचारधारा और सुंदर कहानियाँ हैं, जिनमें भगवद गीता एक अनमोल रत्न है। नेहरू बताते हैं कि ये ग्रंथ हजारों साल पुराने होने के बावजूद आज भी जीवित हैं और लोगों पर प्रभाव डालते हैं।

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पत्र 30 | हिन्दुस्तान के आर्य कैसे थे?

इस पत्र में, नेहरू बताते हैं कि आर्य हजारों साल पहले हिन्दुस्तान आए थे, शायद कई चरणों में, जहां वे लंबे काफिलों में यात्रा करते हुए आए। ज़्यादातर आर्य उत्तर पश्चिम की पहाड़ियों से आए, जबकि कुछ शायद समुद्र के रास्ते सिंधु नदी तक पहुंचे।

आर्यों के जीवन और संस्कृति की जानकारी उनकी प्राचीन पुस्तकों, खासकर वेदों, से मिलती है। वेद दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तकों में गिनी जाती हैं, जिन्हें शुरू में लिखा नहीं गया था, बल्कि लोग उन्हें याद करके गाते और सुनाते थे। ये संस्कृत में लिखी गईं और आज भी उनकी सुंदरता के कारण प्रशंसा की जाती है। वेदों में उस समय के ऋषियों और मुनियों का ज्ञान संकलित था। नेहरू बताते हैं कि वे लोग आज के समय के लोगों से अधिक बुद्धिमान माने जाते हैं और उनकी पुस्तकें आज भी आदर के साथ देखी जाती हैं।

ऋग्वेद, सबसे पुराना वेद, भजनों और गीतों से भरा है, जो दर्शाता है कि पुराने आर्य खुशमिजाज और हंसमुख थे। वे अपनी स्वतंत्रता को बहुत महत्व देते थे और गुलामी से बेहतर मरना समझते थे।

आर्य अच्छे योद्धा थे और विज्ञान और कृषि में भी माहिर थे। वे नदियों और जानवरों, खासकर गाय और बैल, का सम्मान करते थे, क्योंकि ये उनकी खेती और जीवन में सहायक थे। गाय को उनकी उपयोगिता के कारण महत्व दिया गया, लेकिन समय के साथ लोग इसका असली कारण भूलकर उसकी पूजा करने लगे।

आर्य अपनी जाति पर गर्व करते थे और दूसरों से मिलजुल कर रहने से बचते थे। उन्होंने नियम बनाए ताकि अन्य जातियों से विवाह न हो सके। यह धीरे-धीरे जाति व्यवस्था में बदल गया, जिसे नेहरू आज के समय में निरर्थक मानते हैं और कहते हैं कि यह प्रथा अब घट रही है।

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पत्र 29 आर्यों का हिन्दुस्तान में आना

 इस पत्र में नेहरू आर्यों के भारत आने और उससे हुई सांस्कृतिक बदलावों के बारे में बताते हैं। वे समझाते हैं कि आर्यों के आने से पहले भारत में एक प्राचीन सभ्यता थी, जैसे मिस्र में थी, और उस समय भारत में रहने वाले लोग द्रविड़ कहलाते थे। आज के दक्षिण भारत में उनके वंशज रहते हैं।

आर्य मध्य एशिया से आए और खाने की कमी के कारण अन्य देशों में फैल गए, जिनमें से कुछ ईरान और यूनान गए, जबकि कुछ कश्मीर के पहाड़ों के रास्ते भारत आए। आर्य एक ताकतवर योद्धा जाति थे जिन्होंने द्रविड़ों को दक्षिण की तरफ धकेल दिया। शुरुआत में आर्य केवल पंजाब और अफगानिस्तान में बस गए थे, जिसे उस समय "ब्रह्मावर्त" कहा जाता था।

आर्यों का विस्तार धीरे-धीरे गंगा और यमुना के मैदानों तक हुआ, जिसे उन्होंने "आर्यावर्त" नाम दिया। वे नदियों के किनारे बसे, और काशी (बनारस), प्रयाग जैसे शहर नदी तटों पर ही बने।

नेहरू यह भी बताते हैं कि आर्यों के भारत में आने के बारे में पुरानी संस्कृत किताबों से जानकारी मिलती है, जैसे वेदों से, जिनमें ऋग्वेद सबसे पुराना है। इसके बाद पुराण, रामायण, और महाभारत जैसे ग्रंथों से आर्यों की सभ्यता और विस्तार के बारे में और जानकारी मिलती है।

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शनिवार, 21 दिसंबर 2024

पत्र 26,27,28 |पीछे की तरफ एक नज़र, फॉसिल और पुराने खंडहर | पिता के पत्र पुत्री के नाम

पत्र 26 में जवाहरलाल नेहरू जरा ठहर कर पृथ्वी और मानव सभ्यता के लंबे इतिहास पर विचार करते हैं। वह कहते हैं कि कुछ समय के लिए वह नई बातें नहीं लिखेंगे, बल्कि इंदिरा से उम्मीद करते हैं कि वह पहले से लिखी गई बातों पर ध्यान दे। नेहरू बताते हैं कि उन्होंने अपने खतों में करोड़ों साल की यात्रा की है, जब पृथ्वी सूरज का हिस्सा थी और धीरे-धीरे ठंडी होकर अलग हुई। इसके बाद जीवन का जन्म हुआ, जो लाखों-करोड़ों सालों में धीरे-धीरे विकसित हुआ।

नेहरू इंदिरा को समझाते हैं कि जीवन का विकास एक बहुत लंबी प्रक्रिया थी, और इस विशाल समय की कल्पना करना मुश्किल है। वह इंदिरा को याद दिलाते हैं कि इंसान का जीवन इन अनगिनत वर्षों की तुलना में कितना छोटा और मामूली है, और हमें छोटी-छोटी बातों से परेशान नहीं होना चाहिए। नेहरू यह भी बताते हैं कि शुरुआती समय में सिर्फ जानवर थे, और इंसान बहुत कमजोर और छोटा प्राणी था। धीरे-धीरे, हज़ारों सालों में इंसान मजबूत और होशियार बन गया और पृथ्वी पर अन्य जानवरों पर हावी हो गया।

नेहरू यह भी बताते हैं कि असली मानव इतिहास और सभ्यता की उन्नति पिछले तीन-चार हजार सालों में हुई है। जब इंदिरा बड़ी होगी, तो वह इस इतिहास को विस्तार से पढ़ेगी, और वह इन पत्रों में केवल एक झलक दिखा रहे हैं ताकि इंदिरा को इस छोटे से संसार में इंसान की यात्रा के बारे में कुछ जानकारी हो।

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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

पत्र 25 | राजा, मन्दिर और पुजारी | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू समाज की संरचना पर चर्चा करते हुए किसानों, राजा और पुजारियों की भूमिकाओं को समझाते हैं। वे बताते हैं कि किसान और मजदूर, जो भोजन उगाने और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगे रहते थे, सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी शोषित होते थे। उनका अधिकतर उत्पादन राजा और जमींदारों को चला जाता था, जबकि वे खुद बहुत कम पाते थे।

इसके बाद नेहरू धर्म की उत्पत्ति पर बात करते हैं, बताते हुए कि प्रारंभिक मनुष्यों ने प्राकृतिक शक्तियों और अदृश्य चीजों से डरकर देवता बनाए। इन देवताओं की पूजा के लिए मंदिर बनाए गए, जिनमें डरावनी और भयानक मूर्तियाँ होती थीं। लोग इन मूर्तियों की पूजा इसलिए करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि देवता क्रोधित और कठोर होते हैं।

पुजारी, जो उस समय के शिक्षित लोग थे, राजा के सलाहकार बन गए। वे केवल धार्मिक कार्य ही नहीं करते थे बल्कि डॉक्टर, विद्वान, और कभी-कभी जादूगर भी होते थे, जिससे लोग उनका सम्मान और डर करते थे। पुजारी अक्सर लोगों को धोखा देते थे, लेकिन उन्होंने समाज को कुछ हद तक आगे बढ़ाने में भी मदद की।

नेहरू अंत में बताते हैं कि कुछ समाजों में पहले पुजारी शासन करते थे, लेकिन बाद में राजा, जो लड़ाई में कुशल होते थे, ने उन्हें हटा दिया। मिस्र के फिरऊन जैसे कुछ शासक खुद को आधा देवता मानते थे, और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें पूर्ण देवता के रूप में पूजा जाता था।

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