1951–52 में भारत ने वह कदम उठाया, जिसे कोई भी नवस्वतंत्र देश उठाने की हिम्मत नहीं कर सका- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, बिना जाति, लिंग, शिक्षा या संपत्ति की किसी भी शर्त के। दुनिया के अनेक पत्रकार, राजनेता और विशेषज्ञ इसे “खतरनाक प्रयोग” कह रहे थे। पर जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव अंबेडकर, और प्रथम मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुकुमार सेन सामान्य भारतीय की बुद्धिमत्ता और विवेक पर अटूट विश्वास रखते थे। यह वीडियो बताता है कि कैसे दुनिया ने भारत के पहले चुनावों को “निरर्थक नौटंकी” कहा, और कैसे भारत ने उन सभी आलोचनाओं को पीछे छोड़कर इतिहास का सबसे सफल लोकतांत्रिक अध्याय लिखा। गरीबी और निरक्षरता के बीच भी लोकतंत्र पर अटूट विश्वास की यह कहानी आज भी प्रेरणा देती है। यही विश्वास दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव बना।
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