शनिवार, 21 दिसंबर 2024

पत्र 26,27,28 |पीछे की तरफ एक नज़र, फॉसिल और पुराने खंडहर | पिता के पत्र पुत्री के नाम

पत्र 26 में जवाहरलाल नेहरू जरा ठहर कर पृथ्वी और मानव सभ्यता के लंबे इतिहास पर विचार करते हैं। वह कहते हैं कि कुछ समय के लिए वह नई बातें नहीं लिखेंगे, बल्कि इंदिरा से उम्मीद करते हैं कि वह पहले से लिखी गई बातों पर ध्यान दे। नेहरू बताते हैं कि उन्होंने अपने खतों में करोड़ों साल की यात्रा की है, जब पृथ्वी सूरज का हिस्सा थी और धीरे-धीरे ठंडी होकर अलग हुई। इसके बाद जीवन का जन्म हुआ, जो लाखों-करोड़ों सालों में धीरे-धीरे विकसित हुआ।

नेहरू इंदिरा को समझाते हैं कि जीवन का विकास एक बहुत लंबी प्रक्रिया थी, और इस विशाल समय की कल्पना करना मुश्किल है। वह इंदिरा को याद दिलाते हैं कि इंसान का जीवन इन अनगिनत वर्षों की तुलना में कितना छोटा और मामूली है, और हमें छोटी-छोटी बातों से परेशान नहीं होना चाहिए। नेहरू यह भी बताते हैं कि शुरुआती समय में सिर्फ जानवर थे, और इंसान बहुत कमजोर और छोटा प्राणी था। धीरे-धीरे, हज़ारों सालों में इंसान मजबूत और होशियार बन गया और पृथ्वी पर अन्य जानवरों पर हावी हो गया।

नेहरू यह भी बताते हैं कि असली मानव इतिहास और सभ्यता की उन्नति पिछले तीन-चार हजार सालों में हुई है। जब इंदिरा बड़ी होगी, तो वह इस इतिहास को विस्तार से पढ़ेगी, और वह इन पत्रों में केवल एक झलक दिखा रहे हैं ताकि इंदिरा को इस छोटे से संसार में इंसान की यात्रा के बारे में कुछ जानकारी हो।

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हिंदी में:



शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

पत्र 25 | राजा, मन्दिर और पुजारी | पिता के पत्र पुत्री के नाम

इस पत्र में जवाहरलाल नेहरू समाज की संरचना पर चर्चा करते हुए किसानों, राजा और पुजारियों की भूमिकाओं को समझाते हैं। वे बताते हैं कि किसान और मजदूर, जो भोजन उगाने और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगे रहते थे, सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी शोषित होते थे। उनका अधिकतर उत्पादन राजा और जमींदारों को चला जाता था, जबकि वे खुद बहुत कम पाते थे।

इसके बाद नेहरू धर्म की उत्पत्ति पर बात करते हैं, बताते हुए कि प्रारंभिक मनुष्यों ने प्राकृतिक शक्तियों और अदृश्य चीजों से डरकर देवता बनाए। इन देवताओं की पूजा के लिए मंदिर बनाए गए, जिनमें डरावनी और भयानक मूर्तियाँ होती थीं। लोग इन मूर्तियों की पूजा इसलिए करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि देवता क्रोधित और कठोर होते हैं।

पुजारी, जो उस समय के शिक्षित लोग थे, राजा के सलाहकार बन गए। वे केवल धार्मिक कार्य ही नहीं करते थे बल्कि डॉक्टर, विद्वान, और कभी-कभी जादूगर भी होते थे, जिससे लोग उनका सम्मान और डर करते थे। पुजारी अक्सर लोगों को धोखा देते थे, लेकिन उन्होंने समाज को कुछ हद तक आगे बढ़ाने में भी मदद की।

नेहरू अंत में बताते हैं कि कुछ समाजों में पहले पुजारी शासन करते थे, लेकिन बाद में राजा, जो लड़ाई में कुशल होते थे, ने उन्हें हटा दिया। मिस्र के फिरऊन जैसे कुछ शासक खुद को आधा देवता मानते थे, और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें पूर्ण देवता के रूप में पूजा जाता था।

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