शनिवार, 16 अप्रैल 2011

मायाजाल

ब्रह्माजी और नारद मुनि
ब्रह्माजी अपने चारों हाथों में कुछ कुछ थामे हुए, नियमित वस्त्र एवं आभूषणों में सुसज्जित, कमलासन पर विराजित हो, सरस्वती से गाना सुन रहे थे, तभी अचानक, "नारायण, नारायण," कहते हुए नारद मुनि आ धमके.

सरस्वती अपना गाना-बजाना बंद करके बोली, "लो आ गए आपके मानसपुत्र," और वहां से प्रस्थान कर गयी.

"कहिये नारद, कैसे आना हुआ?" ब्रह्माजी आशंकित स्वर में बोले. 

"ही, ही, ही, " नारद मुनि ने अपनी दोनों दंतपंक्तियों का प्रदर्शन करते हुए कहा, "तो क्या मैं हर जगह स्वार्थ से ही जाता हूँ? बस यूं ही चला आया आपके दर्शन हेतु. इसके अतिरिक्त और सार्थक ही क्या है त्रिलोक में? लेकिन भगवन...," नारद मुनि ने मतलब की बात शुरू करने के उद्देश्य से कहा, "भगवन, मनुष्यों की बात कर रहा हूँ मैं. उन्हें अपनी बुद्धि पर जरुरत से ज्यादा घमंड हो गया है. अहंकार बढ़ता ही जा रहा है. 

"मैं अभी अभी पृथ्वी से लौटा हूँ. मनुष्य तो चैन से बैठ ही नहीं सकते. क्या कहते हैं उन्हें... हाँ वो... वैज्ञानिक...बस लगे हैं मायाजाल तोड़ने में.

"लेकिन प्रभु, आपकी माया तो अपरम्पार है. मनुष्य तो क्या उसका बाप भी...LOL...वो भी तो मनुष्य ही है--.क्षमा कीजिये, मेरा तात्पर्य आपसे कदापि नहीं है--.हाँ मैंने कहा कोई नहीं बच सकता आपके मायाजाल से."

ब्रह्माजी अब कुछ गंभीर हो गए. "नारद, बात तो तुम्हारी शत प्रतिशत सही है."

नारद मुनि ने गौर किया कि ब्रह्माजी उनकी बात को महत्व दे रहे हैं. अतः उत्साहित होकर बोले, "प्रभु आप धरा पर जाकर तो देखिये. इलेक्ट्रोन से नीचे तो कोई बात ही नहीं करता. कलम लगा रहे हैं--पेड़ पौधों की  नहीं, जीवित मनुष्यों की. जीन संश्लेषण कर रहे हैं. जो रोग उन्हें पिछले जन्मों के कुकर्मों की वजह से मिले होते है, उनका वे औषधियों से उपचार कर लेते हैं. हे भगवान, उन्हें सदबुद्धि दो ताकि वे अपना समय व्यर्थ के शोध कार्यों में न गवां कर, आपके चिंतन मनन भजन कीर्तन में व्यतीत करें.

"आपने कुछ सोचा तो है न उनके बारे में? मुझे तो चिंता खाए जा रही है. कुछ तो हल निकालिए. बुद्धि में तो हम सवाए ही हैं मनुष्यों से."

"ओ हो, नारद, तुम तो तिल का ताड़ बना रहे हो. मैंने एक काम ठीक किया था कि मनुष्य को बनाते वक्त उसे बुद्धि उन्नीस ही दी. मैं तो बीस देनेवाला था. भला हो मेरी अंतरात्मा का कि सचेत कर दिया. उस वक्त किसने सोचा था कि ये इतना कहर ढाएँगे.

"मेरे पास दो उपाय हैं. एक तो उनकी मति भ्रष्ट कर दी जाये ताकि परमाणु युद्ध छिड़ जाये, या फिर से विष्णु को भेजा जाये. परन्तु मैं भी भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की तरह कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ. विष्णु कुछ कहता है, शिव कुछ और कहते हैं, ऊपर से गायत्री को मेरा कोई आइडिया कतई पसंद नहीं आता.

"अब तुम ही बताओ, कब तक पांचाली के चीर की भांति माया बढाता रहूँगा? इन अवगुणी मनुष्यों की ही वजह से मुझे सूक्ष्म और स्थूल, सभी किस्म के, जाल रचने पड़ते हैं. नित्य नए उपाय सोचने पड़ते हैं. ये तो नहीं कि चंद्रू को देख कर उसकी पूजा करें, अर्पण करें, नहीं, वे तो उसके पास ही जायेंगे. हमने भी सोच लिया है, क्यों उन्हें चंद्रू के दर्शन दिए जाएँ. बना दिया निस्सार मिट्टी का गोला. बच्चों, निकालो उसकी त्रिज्या, निकालो उसका द्रव्यमान, गुरुत्वीय त्वरण. ले जाओ उसके मिट्टी-पत्थर और करो उनका परीक्षण. सिर धुनों अपना बैठकर.

"सूर्य के निकट तो जा ही नहीं सकते, लेकिन अनुमान लगाने में लगे हैं. अन्य ग्रहों को मैंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि किसी को भी विपदा की कोई आशंका हो तो तुरंत स्वर्गलोक चले आओ. यहाँ रोटी-पानी की कमी थोड़ी ही है.

"हे पृथ्वीवासियों, तुम जिस मार्ग पर चल रहे हो, कभी मंजिल पर नहीं पहुंचोगे. तुम सौरमंडल की खोज करोगे, मैं गैलेक्सी बना दूंगा, तुम जितना आगे बढोगे, मैं ब्रह्माण्ड उतना ही विस्तृत करता जाऊँगा. फिर चकराएगा तुम्हारा सर जब आर पार नहीं सूझेगा. तब जाकर अक्ल ठिकाने आयेगी. फिर बैठकर जपोगे, 'माया फ़ैलाने वाले, माया से मुझे बचाओ.'

"तुम चिंता न करो नारद, वे इलेक्ट्रोन तोड़ कर क्वार्क, लेप्टोन, बोसोन तक पहुँच गए तो क्या? अभी हिग्स बोसोन ढूँढने में कई वर्ष लगेंगे. और यदि खोज कर ही ली तो हम और मायाजाल फैलायेंगे. उसमे कौनसी बड़ी बात है. 

"अब देखो, गलती तो हो ही जाती है. मैं कुछ सृजन करता हूँ मनुष्य उसका कुछ और अर्थ निकल लेते हैं. जब मैंने परमाणु बनाया था, तब मुझे भी नहीं पता था कि उससे इतनी ऊर्जा निकलेगी. खैर छोडो बीती बातों को. "

"सही बात है, भगवन, बिलकुल छोड़ने वाली बात नहीं है." नारद को काफी देर बाद मुंह खोलने का मौका मिला. "एक भारतवर्ष से आशा थी कि वह ज्ञान का प्रकाश फैलाएगा, लोगों की जिज्ञासा को अध्यात्म की ओर मोड़ेगा, परन्तु उसने भी निराश ही किया है. वह भी भौतिकवाद के चंगुल में फँस गया है. अँधा होकर पश्चिम का अनुकरण कर रहा है. यहाँ तक कि नई पीढ़ी में तो इश्वर के प्रति आस्था रह ही नहीं गयी है. क्या करें, जानबूझ कर अपना जीवन व्यर्थ कर रहे हैं."

नारद मुनि की बात समाप्त हुई ही थी कि एक दूत हांफता हुआ पहुंचा. दोनों को प्रणाम करके सूचना दी कि मनुष्य ने कृत्रिम सूर्य का निर्माण कर लिया है. 

उसकी बात सुनकर, नारद मुनि एवं ब्रह्माजी, दोनों सन्न रह गए.

देवलोक में यह समाचार जहाँ जहाँ पहुंचा, खलबली मच गयी. 

इन्द्रादि देवों ने मिलकर तय किया कि अगले दिन एक महत्वपूर्ण सभा बुलाई जाएगी, जिसमें मनुष्य के विश्वासघात एवं बढती हुई स्वछन्द प्रवृत्ति के विषय में विचार किया जायेगा. 

उस रात नींद तो किसी को आई नहीं. कई देवगण उत्सुकतावश वेश बदल कर, पृथ्वी पर उतर आए, कृत्रिम सूर्य के दर्शन करने के लिए.

16 टिप्‍पणियां:

  1. Kratim Surya ka nirmand...
    kar devon ki neend haraam,
    kya khoobi se kiya bayaan
    ki rok na sake hum muskaan :))

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  2. वाह! क्या बात | आपके इस लेख ने मुझे अपने स्कूल की हिंदी की किताब याद दिला दी | हिंदी और अंग्रेजी आप दानो मे बहुत अच्चा लिखती हो |

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  3. वाह संगीता, क्या शायरी है!

    @प्रतुल: शुक्रिया! आप भी मात्राएँ ठीक लगा लेते हैं :-)

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  4. कोष्‍ठक में कहानी लिखकर बहुत अच्‍छा किया। विश्‍वामित्र नामक मनुष्‍य ने पहले भी एक बार ऐसी कोशिश की थी आपको याद होगा। अच्‍छी कल्‍पना है अंत थोडा कम जोरदार है पूरी कहानी की तुलना में :-)

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  5. मैंने तो अपनी तरफ से धाँसू एंडिंग की थी :-/
    आपका ताना सुनने के बाद टाइटल से कहानी शब्द हटा दिया. अब किसी ने इस कहानी को सत्य घटना समझ लिया तो मेरी जिम्मेदारी नहीं है.

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  6. "अब तुम ही बताओ, कब तक पांचाली के चीर की भांति माया बढाता रहूँगा?..." आपके सटायर में भी कितनी चेतवानी भरी बातें छुपी होती हैं. कमाल है. सब कुछ कसा हुआ और गंभीर... लिखते रहिये कि प्रतीक्षा बनी हुई है.

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  7. @किशोर: शुक्रिया! ये बहुत ज्यादा तारीफ है. But I hope you genuinely liked it :-)

    @Anchal: Thanks for reading :-)

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  8. बहुत शानदार लिखा, मज़ा आ गया।

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  9. beautifully written
    like the end meeting will be called tomorrow and invention of artificial SUN.

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  10. लो कर लो बात, पर इसी सब का परिणाम तो सुनामी के रूप में आ रहा है।

    करारा

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  11. This is too goood.

    I always like satire with mixing of religion and science and that is the real good satire.

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